


Sunday, January 27, 2013
कभी खाने के लाले हैं
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अरुन शर्मा अनन्त at
Sunday, January 27, 2013
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Friday, January 25, 2013
नतीजा न निकला मेरे प्यार का
ग़ज़ल
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12
तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,
चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,
तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,
कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,
नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12
तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,
चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,
तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,
कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,
नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....
निहाँ - गुप्त चोरी-छुपे
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, January 25, 2013
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Wednesday, January 23, 2013
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम
ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
बड़ों के कहे का नहीं मान है,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
नियत डगमगाती सभी नारि पे,
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,
गुनाहों कि आई हवा जोर से,
शरम लाज का अब ज़माना खतम,
शरम लाज का अब ज़माना खतम,
मुलाकात का तो समय ही नहीं,
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,
जुबां पे नये गीत सजने लगे,
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, January 23, 2013
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Sunday, January 20, 2013
क्या खुदा भगवान आदम???
खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
चोर मन ले फिर रहा है,
कोयले की खान आदम,
कोयले की खान आदम,
नारि पे ताकत दिखाए,
जंतु से हैवान आदम,
जंतु से हैवान आदम,
मौत आनी है समय पे,
जान कर अंजान आदम,
जान कर अंजान आदम,
सोंचता है सोंच नीची,
बो रहा अपमान आदम,
बो रहा अपमान आदम,
मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???
क्या खुदा भगवान आदम???
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अरुन शर्मा अनन्त at
Sunday, January 20, 2013
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Friday, January 18, 2013
खरामा - खरामा
खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,
भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,
अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,
शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,
जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,
जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, January 18, 2013
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प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है
(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,
कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,
मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,
कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,
मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, January 18, 2013
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Saturday, January 12, 2013
हद है
मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
कौन अपना है पराया है हमे क्या मालुम,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,
भूल मुझको जो गई यादों के हर लम्हों से,
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, January 12, 2013
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Wednesday, January 9, 2013
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो
इंसान की फितरत खुदा हर हाल बदलो,
थोड़ी समय की गति जरा सी चाल बदलो,
खोटी नज़र के लोग अब बढ़ने लगे हैं,
आदत निगाहों की गलत इस साल बदलो,
जीना नहीं आसान इस दौरे जहाँ में,
अपमान ये घृणा बुरा हर ख्याल बदलो,
नारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
कमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,
लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,
नारद उठाओ प्रभु को किस्सा सुनाओ,
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो.
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Wednesday, January 09, 2013
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Monday, January 7, 2013
संकल्प
संकल्प है अंधेर की नगरी मिटानी है,
संकल्प है अपमान की गर्दन उड़ानी है,
दुश्मन हो बेशक मेरी लेखनी समाज की,
संकल्प है इन्सान की सीमा बतानी है,
अंग्रेज जिस तरह से हिंदी को खा रहे,
संकल्प है अंग्रेजों को हिंदी सिखानी है,
बहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है,
रीति -रिवाज भूले फैशन के दौर में,
संकल्प है आदर की चादर बिछानी है,
भटकी है युवा पीढ़ी दौलत की चाह में,
संकल्प है शिक्षा की सही लौ जलानी है....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Monday, January 07, 2013
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Thursday, January 3, 2013
दानव का किरदार ले गए
जीने के आसार ले गए,
जीवन का आधार ले गए,
भूखों की पतवार ले गए,
लूटपाट घरबार ले गए,
छीनछान व्यापार ले गए,
दौलत देश के पार ले गए,
खुशियों के बाज़ार ले गए,
औषधि और उपचार ले गए,
सारा आदर सत्कार ले गए,
प्रेम भाव त्यौहार ले गए,
पेट्रोल बढ़ाया कार ले गए,
गाड़ी मेरी मार ले गए,
खुद्दारी खुद्दार ले गए,
दानव का किरदार ले गए.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, January 03, 2013
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Monday, December 31, 2012
जब बुढ़ापे का - खुदा दे के सहारा छीने
ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक ३० में शामिल मेरी दूसरी ग़ज़ल
मौत को दूर, मुसीबत बेअसर करती है,
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,
जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,
देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,
फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,
जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,
जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,
जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,
देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,
फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,
जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,
जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...
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अरुन शर्मा अनन्त at
Monday, December 31, 2012
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Saturday, December 29, 2012
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है
"ओ बी ओ तरही मुशायरा" अंक ३० में शामिल मेरी पहली ग़ज़ल.
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, December 29, 2012
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Friday, December 28, 2012
कुण्डलिया प्रथम प्रयास
आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम सर के द्वारा संशोधित कुण्डलिया प्रथम प्रयास
सोवत जागत हर पिता, करता रहता जाप,
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
हे नारायण आप , कृपा अपनी बरसाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
बीते जीवन नित्य,प्रेम के पुष्प पिरोवत
अधरों पर मुस्कान,सदा हो जागत सोवत
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, December 28, 2012
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Thursday, December 27, 2012
तुम न मुझको भूल जाना
तुम न मुझको भूल जाना,
याद करना याद आना,
याद करना याद आना,
जिंदगी तेरे हवाले,
छोड़ दो या मार जाना,
छोड़ दो या मार जाना,
प्यार तेरा बंदगी है,
आज है तुझको बताना,
आज है तुझको बताना,
चाहते हैं लोग सारे,
दाग से दामन बचाना,
दाग से दामन बचाना,
ठीक ये बिलकुल नहीं है,
हार कर आंसू बहाना .....
हार कर आंसू बहाना .....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, December 27, 2012
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Monday, December 24, 2012
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता
यही देश था वीरों की गाता अद्भुत गाथा,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रहा प्रकृति की हरियाली,
आज इसी धरती पे प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
घटती हैं हर रोज हजारों शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के अपना काम चलाएं,
अपना ही व्यख्यान सुनाकर फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
होंठों पे सौ किलो चासनी दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं फैली अजब बिमारी,
ऐसी हालत देख खड़ा बुत भी है शर्माता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रहा प्रकृति की हरियाली,
आज इसी धरती पे प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
घटती हैं हर रोज हजारों शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के अपना काम चलाएं,
अपना ही व्यख्यान सुनाकर फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
होंठों पे सौ किलो चासनी दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं फैली अजब बिमारी,
ऐसी हालत देख खड़ा बुत भी है शर्माता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
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Monday, December 24, 2012
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Saturday, December 22, 2012
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर
लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
सुबह दोपहर हर घड़ी शाम हरपल,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
गिला जिंदगी से रहा हर कदम पे,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, December 22, 2012
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Thursday, December 20, 2012
ओ. बी. ओ. "चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक-21 के लिए लिखी रचना
भीग-भीग बरसात में, सड़ता रहा अनाज,
गूंगा बना समाज है, अंधों का है राज,
देखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
धनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,
दौलत की लालच हुई, बेंचा सर का ताज,
अब सुनता कोई नहीं, भूखों की आवाज,
कहते अनाज देवता, फिर भी यह अपमान,
सच बोलूं भगवान मैं, बदल गया इंसान,
काम न आया जीव के, सरकारी यह भोज,
पाते भूखे पेट जो, जीते वे कुछ रोज...
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, December 20, 2012
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Sunday, December 16, 2012
लड़खड़ाते पांव मेरे - जबकि मैं पीता नहीं
याद में तेरी जिऊँ, मैं आज में जीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
नाज़ नखरे रख रखें हैं, आज भी संभाल के,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
तोलना है तोल लो तुम, नापना है नाप लो,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
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Sunday, December 16, 2012
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Saturday, December 15, 2012
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार मुझको छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
देखकर मुझको निगाहें फेर लेना,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
बेवजह मुझको मिली बदनामियाँ हैं,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
नींद से मैं जाग जाता हूँ अचानक,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
चाह है मैं चाहता उसको रहूँ बस,
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर.
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर.
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Saturday, December 15, 2012
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Friday, December 14, 2012
बूढ़े बाबा की दीवानी
मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी
पावक लगती ठंडा पानी
देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,
बारिश करके की शैतानी,
राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.
सबके मन को है ये भानी.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, December 14, 2012
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Thursday, December 13, 2012
चाह है उसकी मुझे पागल बनाये
चाह है उसकी मुझे पागल बनाये,
बेवजह उड़ता हुआ बादल बनाये,
लोग देखेंगे जमीं से आसमां तक,
रेत में सूखा घना जंगल बनाये,
जान के दुखती रगों को छेड़कर,
दर्द की थोड़ी बहुत हलचल बनाये,
पास रखना है मुझे हर हाल में,
आँख का सुरमा कभी काजल बनाये,
दौर आया मुश्किलों की ओढ़ चादर,
और वो पत्थर मुझे दलदल बनाये,
मैं रहा तन्हा अकेला जिंदगी भर,
दूर सब अपने खड़े थे दल बनाये,
जान लो वो मार देगा जान से जो,
चासनी लब पर रखे हरपल बनाये....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, December 13, 2012
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Monday, December 10, 2012
शीत डाले ठंडी बोरियाँ
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 26 के लिए लिखी रचना "हेमंत ऋतु" पर आधारित
देख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,
गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,
धुंध को फैला रही है राह में,
बांधती है मुश्किलों की डोरियाँ,
बादलों के बाद रखती आसमां,
धूप की ऐसे करे है चोरियाँ,
सुरसुरी बहती पवन झकझोर दे,
काम खुल्लेआम सीनाजोरियाँ.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Monday, December 10, 2012
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Sunday, December 9, 2012
हेमंत ऋतु पर कुछ हाइकू
शीतल जल
रविकर किरण
हिम पिघल
आग जलाई
कहर निरंतर
ओढ़ रजाई
चौपट धंधे
हैं चिंतित किसान
छुपे परिंदे
गर्म तसला
मुरझाई फसल
सूर्य निकला
घना कुहासा
खिलखिले सुमन
शीतल भाषा
पौष से माघ
सुरसुरी पवन
पानी सी आग
शुरू गुलाबी
मानव भयभीत
शिशिर बाकी
रविकर किरण
हिम पिघल
आग जलाई
कहर निरंतर
ओढ़ रजाई
चौपट धंधे
हैं चिंतित किसान
छुपे परिंदे
गर्म तसला
मुरझाई फसल
सूर्य निकला
घना कुहासा
खिलखिले सुमन
शीतल भाषा
पौष से माघ
सुरसुरी पवन
पानी सी आग
शुरू गुलाबी
मानव भयभीत
शिशिर बाकी
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Sunday, December 09, 2012
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Saturday, December 8, 2012
कारवाँ ठंडी हवा का
कारवाँ ठंडी हवा का आ गया है।
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
राह नज़रों को नहीं आती नज़र अब।
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
पांव ठंडे, हाँथ ठंडे - थरथराते।
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
पास घर दौलत नहीं रोटी न कपड़े।
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
घिर रही घनघोर काली है घटा फिर।
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
बोल बाला मर्ज का फिर से जगा है।
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, December 08, 2012
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Friday, December 7, 2012
कुछ हाइकु
मित्र मित्रता
शिव भोले श्री राम
सत्य सत्यता
गंगा स्नान
सुन्दर हो विचार
अंतर ध्यान
व्याकुल मन
अशांत सरोवर
राम भजन
कर्म प्रधान
सम्पूर्ण परमात्मा
आत्म सम्मान
भीषण ज्वर
होनी हो अनहोनी
श्री गिरधर
गीता का सार
लोक व परलोक
जीत में हार
जग कल्याण
ब्रम्हा - विष्णु - महेश
आत्मा है प्राण
शिव भोले श्री राम
सत्य सत्यता
गंगा स्नान
सुन्दर हो विचार
अंतर ध्यान
व्याकुल मन
अशांत सरोवर
राम भजन
कर्म प्रधान
सम्पूर्ण परमात्मा
आत्म सम्मान
भीषण ज्वर
होनी हो अनहोनी
श्री गिरधर
गीता का सार
लोक व परलोक
जीत में हार
जग कल्याण
ब्रम्हा - विष्णु - महेश
आत्मा है प्राण
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, December 07, 2012
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Thursday, December 6, 2012
प्यार से तस्वीर मेरी पोंछना आंसू बहाके
प्यार से तस्वीर मेरी, पोंछना आंसू बहाके।
शीश खटिये पे टिकाकर, सोंचना आंसू बहाके।।
चैन से जी भी न पाये,चैन से मर भी न पाये।
याद के टुकड़े पुराने, नोंचना आंसू बहाके।।
इस कदर मेरी मुहब्बत, कर गई बर्बाद उसको।
नाम लिख मेरा हँथेली, गोंचना आंसू बहाके।।
जब कभी मेरी कमी खलती, उसे है खामखा तब।
दर्द में दुखती रगों को कोंचना आंसू बहाके।।
जख्म से मजबूर होके, घाव ले जीती रही।
क्या करे तकदीर को है, कोसना आंसू बहाके।।
चाँद से हो खूबसूरत, जब कभी उसको कहूँ मैं।
शर्म से फिर मुस्कुराना, रोकना आंसू बहाके।।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, December 06, 2012
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Monday, December 3, 2012
कुछ - हाइकु
पराया धन
बढ़ाता परेशानी
मन में चिंता
बुरी नज़र
जलाती तिल तिल
प्रेम संसार
क्रोधित मन
समझता कब है
अपनी भूल
ज्ञानी ह्रदय
बड़ा शांत स्वभावी
प्रकृति जैसा
फूल के पीछे
पड़ी हवा दिवानी
भौंरा पागल
शाम - सबेरे
है ठण्ड झकझोरे
शीत ऋतु की
घूमा मंदिर
भगवान को पाया
मन भीतर
माँ की ममता
अथाह पारावार
पार न पाए
बढ़ाता परेशानी
मन में चिंता
बुरी नज़र
जलाती तिल तिल
प्रेम संसार
क्रोधित मन
समझता कब है
अपनी भूल
ज्ञानी ह्रदय
बड़ा शांत स्वभावी
प्रकृति जैसा
फूल के पीछे
पड़ी हवा दिवानी
भौंरा पागल
शाम - सबेरे
है ठण्ड झकझोरे
शीत ऋतु की
घूमा मंदिर
भगवान को पाया
मन भीतर
माँ की ममता
अथाह पारावार
पार न पाए
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Monday, December 03, 2012
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Sunday, December 2, 2012
दूरियां हों लाख - याद है जाती नहीं
दिन कहीं छुप खो गया है, रात भी बाकी नहीं।
मुश्किलें हैं हर कदम पर, बात बन पाती नहीं।।
इक दफा दिल पे कभी, जो राज कोई कर गया।
दूरियां हों लाख चाहे, याद फिर जाती नहीं।।
दिल्लगी कर दिल दुखाना, ठीक ये आदत नहीं।
पास तेरे दिल नहीं, तू और जज्बाती नहीं।।
नाज तेरी मैं वफ़ा पे, रात दिन करता रहा।
बेवफा तेरी कहानी पर, जुबाँ गाती नहीं।।
जख्म गर नासूर बनके, जिस्म को छलनी करे।
मौत है ये जिंदगी, जो मौत कहलाती नहीं।।
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Sunday, December 02, 2012
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Saturday, December 1, 2012
छलके -अंजु बूंद
छलके जब-जब अंजु, बूंद तब-तब,
तेरी सूरत लिए, निगाह निकली,
आई तेरी याद, जब एकाएक,
मेरे दिल में दर्द, आह निकली,
नामुमकिन तुझको, हुआ भुलाना,
तेरी इतनी यार, चाह निकली,
यूँ बेचैनी - बेबसी बढ़ी की,
यूँ बेचैनी - बेबसी बढ़ी की,
पीड़ा हर पल छिन,अथाह निकली,
कातिल तेरी जब, हुई मुहब्बत,
हर धड़कन मेरी, गवाह निकली.
अंजु - आँसू
अंजु - आँसू
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Saturday, December 01, 2012
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Friday, November 30, 2012
जखम - छुपाना पड़ेगा
लबों पर हंसी को, बिछाना पड़ेगा,
निगाहों का पानी, सुखाना पड़ेगा,
नमक लेकर पीछे, जमाना पड़ा है,
जखम अपने दिल का, छुपाना पड़ेगा,
भरोसे के बदले, करे शक हमेशा,
मुहब्बत का लहजा, सिखाना पड़ेगा,
उदासी का आलम,हुआ साथ मेरे,
तबाही का बोझा, उठाना पड़ेगा,
वफ़ा करते-करते, लुटा चैन मेरा,
जुदाई में जिन्दा, जलाना पड़ेगा,
नहीं इतनी अच्छी, सनम दिल्लगी है,
दगा का तुम्हें ऋण, चुकाना पड़ेगा।
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Friday, November 30, 2012
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Wednesday, November 28, 2012
इन दिनों - भाग चार
बिखरा है टूटा सारा, सामान इन दिनों,
आया है मेरे घर फिर, तूफ़ान इन दिनों,
लुट कर पहले खुद फिर,सबकुछ लुटा गया,
चाहा है मेरे दिल ने, नुकसान इन दिनों,
जालिम वो जाजिब, है अपनी ओर खींचता,
लगता है बदला वो, बेईमान इन दिनों,
उरियां है सारा जीवन, बेजान सा लगे,
रूठा है मेरा मुझसे, भगवान इन दिनों,
दूरी की डोर नादिर है, गांठ दरमियाँ,
लगती हैं दिल राहें, सुनसान इन दिनों,
नैना हैं तेरे चाकू, दें घाव जब चले,
लगता है लेकर छोड़ेंगे, जान इन दिनों,
बाजीचा हूँ, तेरी हांथों का नचा मुझे,
जिन्दा हूँ, मैं हूँ फिरभी,बेजान इन दिनों,
जाजिब-आकर्षक , उरियां-शून्य, नादिर-दुर्लभ,
बाजीचा-खिलौना
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Wednesday, November 28, 2012
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Monday, November 26, 2012
घातक इश्क का विष
दिल की आदत को, बदला जाएगा,
ये दिल जब अपना, पगला जाएगा,
देखेंगे कितना, दम है इश्क में,
अब साँसों तक, ये मसला जाएगा,
करके कब्ज़ा सब, बैठे चोर हैं,
पकड़ो इनको तो, घपला जाएगा,
दे दे गम अपनी, यादों का अगर,
ये गम ही मुझको, बहला जाएगा,
बरसी है मेरी, आँखों में नमी,
कैसे चाहत का, नजला जाएगा,
घातक है चाहत का, विष जो चढ़ा,
मुस्किल से फिर दिन, अगला जाएगा।
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Monday, November 26, 2012
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Saturday, November 24, 2012
दिल था कच्चा - चटक गया
दिल था कच्चा, चटक गया,
मैं इस पथ में, भटक गया,
बंजर भी हूँ, विरान भी,
हरियाली को, खटक गया,
खंजर-चाकू,चली छुरी,
तेरी सुध में, अटक गया,
जर्जर दिल की, दिवार है,
नैना पानी, पटक गया,
वश में धड़कन, नहीं रही,
दिल तो साँसे, गटक गया,
खुशियों में हाँथ, थाम के,
गम में आकर, झटक गया,
रूठा जब रब "अरुन" का,
कर से जीवन, छटक गया।।
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Saturday, November 24, 2012
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Friday, November 23, 2012
इन दिनों - भाग तीन
तेरी बहुत आती है, याद इन दिनों,
दिल ने किया मुझको, बर्बाद इन दिनों,
गम ने निशाना, घर की ओर कर लिया,
कैदी बना है दिल, आज़ाद इन दिनों,
पागल मुझे तेरी, करती रही अदा,
कातिल तेरी अदा को, दाद इन दिनों,
डाली डकैती दिल की, जायदाद पर,
बढ़ता रहा हर दिन, बेदाद इन दिनों,
नक्बत इश्क में, आया "अरुन" के,
सुनता नहीं रब भी, फ़रियाद इन दिनों,
बेदाद - अत्याचार,
नक्बत - दुर्भाग्य
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Friday, November 23, 2012
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Wednesday, November 21, 2012
जला है दिल "अरुन" का
नज़र में रात पार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नसीबा चूर यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
बजी है धुन गिटार की, लगा है मन को रोग फिर,
जो टूटा प्रेम तार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
सबेरे-शाम-रात-दिन है, याद तेरी साथ बस
यही अगर जो प्यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नहीं हुआ है दर्द कम, दवा भी ली दुआ भी की,
ये ज़ख़्म बार-बार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
जला है दिल "अरुन" का, कुछ इस तरह से दोस्तों,
जलन ये जोरदार हो तो हो रहे, तो हो रहे.....
ये ग़ज़ल मैंने पंकज सुबीर सर के ब्लॉग के लिए लिखी थी, कुछ त्रुटियाँ थीं परन्तु पंकज सर नें त्रुटियों को संशोधित कर दिया है।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, November 21, 2012
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Sunday, November 18, 2012
कुछ - शे'र
होगा कैसा आगाज, देखा जाएगा,
कर लूं खुद को बर्बाद, देखा जाएगा,
जीना है मरना है, इश्क में हर घडी,
बाकी सब तेरे, बाद देखा जाएगा....
कर लूं खुद को बर्बाद, देखा जाएगा,
जीना है मरना है, इश्क में हर घडी,
बाकी सब तेरे, बाद देखा जाएगा....
अश्कों पे कैसे, लगायेंगें ताले,
यादें तुम्हारी, जखम दिल में डाले,
बदला है सबकुछ,मगर फिर भी यारों,
घर से ना जाएँ, मुहब्बत के जाले।
दिन दूभर, लगी रात भारी।
ऐसी है, इश्क की बिमारी।।
शबनमी बूंदें, यूँ पलकों पे जमी होती है।
हम बहुत रोते हैं जब तेरी कमी होती है।।
इश्क नासूर, बेइलाज है।
जख्म नें बदला,मिजाज है।।
कभी आँखों से, बहे अश्क।
कभी दिल से दिल, नराज है।।
यादें तुम्हारी, जखम दिल में डाले,
बदला है सबकुछ,मगर फिर भी यारों,
घर से ना जाएँ, मुहब्बत के जाले।
दिन दूभर, लगी रात भारी।
ऐसी है, इश्क की बिमारी।।
शबनमी बूंदें, यूँ पलकों पे जमी होती है।
हम बहुत रोते हैं जब तेरी कमी होती है।।
इश्क नासूर, बेइलाज है।
जख्म नें बदला,मिजाज है।।
कभी आँखों से, बहे अश्क।
कभी दिल से दिल, नराज है।।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Sunday, November 18, 2012
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Friday, November 16, 2012
इन दिनों - भाग दो
छलक जाता है आँखों से, सावन इन दिनों,
नसीबा टूटा है भारी है, मन इन दिनों,
सदा बेचैनी का, आलम मेरे साथ है,
उदासी आई फिर से, लिए उलझन इन दिनों,
क्यूँ है दिल में हलचल, ये भी मालुम नहीं,
नहीं माने मेरा कहना, धड़कन इन दिनों,
बसी है आखों में, तेरी सूरत जादुई,
लुटा चाहत में है दिल का, उपवन इन दिनों,
हुआ है दिल जबसे जख्मी, जागा है दर्द,
सभी से हो बैठी, मेरी अनबन इन दिनों,
बुझी है जीवन की लौ रह-2 के हर घडी,
जला है सांसों का, सारा ईंधन इन दिनों।
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Friday, November 16, 2012
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Sunday, November 11, 2012
चलो साथ मिलके दिवाली मनायें
चलो साथ मिलके, अँधेरा भगायें,
दिये रोशनी के, हम दिल से जलायें,
मिटा दें दिलों से, अमलन नफरतों को,
मुहब्बत नगर स्वच्छ, सुन्दर बसायें,
पिता-मात हैं, पावन मूरत खुदा की,
करें रोज़ पूजा, नतमस्तक झुकायें,
बहे प्रेम की दिल में, गंगा हमेशा,
गिरां जोड़, रिश्तों के भीतर लगायें,
पटाखे - मिठाई, हो सबको बधाई,
दिवाली पर्व आओ,मिलजुल मनायें।।
अमलन - सचमुच
गिरां - महत्वपूर्ण
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Sunday, November 11, 2012
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Labels: दिवाली
Saturday, November 10, 2012
इन दिनों - भाग एक
मुहब्बत का सूरज, ढला इन दिनों,
उजाला भी घर से, चला इन दिनों,
बिना तेरे जीना, सजा है लगे,
मुझे तेरा जाना, खला इन दिनों,
निगाहों से आंसू, बहे हर घडी,
जला दिल से ये, दिलजला इन दिनों,
तबाही का मंजर, बढ़ा दिन-ब -दिन,
उठा साँसों में, जलजला इन दिनों,
ख़ुशी तेरी यूँ ही, सलामत रहे,
दिया बन मैं तिल-2, जला इन दिनों,
वफ़ा करते-करते, जफा कर गये,
दुआ है तेरा हो, भला इन दिनों,
दर्द - बेचैनी - बेबसी रात दिन,
रहा खुशियों से, फासला इन दिनों।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, November 10, 2012
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Thursday, November 8, 2012
कश्तियों का कातिल
जख्म मनमानी कर, खफा हो जाता है,
अश्क आँखों को, खामखा धो जाता है,
दुश्मनी दिल से, कर गया दिल का जाबित,
रोग दिल का अक्सर, दर्द बो जाता है,
कश्तियों का कातिल, बवंडर सागर का,
लोभ में मांझी का, खुदा खो जाता है,
याद तेरी लाये, हवा का हर झोंका,
माफ़ करना ये दिल, अगर रो जाता है,
छोड़ जाता है साथ, जब कोई तन्हा,
लौट के आया कब चला, जो जाता है,
टूट जाती है डोर, जिसके सांसों की,
मौत की बाँहों में, वही सो जाता है,
जाबित - मालिक, स्वामी
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, November 08, 2012
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Wednesday, November 7, 2012
मुझे इश्क की बिमारी लगी
दिन दूभर और रात भारी लगी,
जाने कैसी मुझे, बिमारी लगी,
आँखों का हाल, दिल समझता नहीं,
साँसों में आग, रोज जारी लगी,
पागल हैं धडकनें, इश्क में इस कदर,
अब अच्छी और, बेकरारी लगी,
मीलों तक दूरियां, दिलों में रही,
देती तकलीफ, याद खारी लगी,
बिखरी आबाद जिंदगी, इस तरह,
अत्र फूलों की लुटी, क्यारी लगी,
अत्र - सुगन्धित
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Wednesday, November 07, 2012
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Saturday, November 3, 2012
उसकी दुश्मनी, उसकी रिश्तेदारी,
कैसी आई समस्या, पाली कैसी बीमारी,
उसकी मुझसे दुश्मनी, उसकी दिल से रिश्तेदारी,
भीगी-भीगी दास्ताँ, कहती आँखें हैं जागी-जागी,
जिन्दा आफत धडकनों में, साँसों में मारामारी,
जर्जर मेरी काफिया, आवारा पागल मैं कातिब,
पेंचीदा मेरी ग़ज़ल है, आदत मेरी सरकारी,
दुर्भाग्य पूर्ण दर्द है, फंसी जिसमे है नारी,
मारी गुड़िया पेट में, तो कैसे गूंजे किलकारी,
अनजाने गम की खलिश, मुझमे सदियों से है कायम,
गमदीदा मेरी मुहब्बत, तेरी फितरत से हारी.
कातिब - लेखक
कातिब - लेखक
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, November 03, 2012
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Friday, November 2, 2012
तुम्हे पाने की जिद
तुम्हे पाने की दिल में, उठी जो जिद नहीं होती,
दुनिया मेरी इस तरहा, लुटी हरगिज नहीं होती,
भीगी-भीगी आँखें हैं, सुबह से शाम तक यारों,
तेरी चाहत जो होती न, ये बारिश नहीं होती,
तेरी यादों का हर पल, मुझे बेचैन करता है,
मैं पागल कैसे होता, अगर साजिश नहीं होती,
हर पल अँधेरे से यूँ, दिलों के हैं भरे कमरें,
दिल के दर पे कोई, डोर जो बंदिश नहीं होती,
नादिर तेरी चाहत कैद है, दिन रात साँसों में,
ये दिल पत्थर यूँ होता न, जो रंजिश नहीं होती।।
नादिर - अनमोल
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Friday, November 02, 2012
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Wednesday, October 31, 2012
माँ के चरणों में
माँ के चरणों में भेजा है,
मैंने एक संदेश,
या तो मेरे घर आओ,
या मुझको दो आदेश,
मन का दरवाजा खोला,
माँ कर लो ना प्रवेश,
सेवा करने की खातिर,
मैं खिदमत में हूँ पेश,
न्योछावर जीवन करना,
अब मेरा है उद्देश्य,
चलना सच्ची राहों पे,
माँ देती हैं उपदेश।।।।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, October 31, 2012
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Labels: ईश्वर, मेरी माँ
Saturday, October 27, 2012
कैसे मिलते राम
मारा-मारा फिरता है,
प्राणी चारों धाम,
मन के भीतर खोजा ना,
कैसे मिलते राम,
जीवन कैसा जीता है,
प्राणी हो गुमनाम,
एक दूजे के हिस्से हैं,
श्री राधे-घनश्याम,
किस्मत अपनी रूठे तो,
बनता बिगड़े काम,
होनी-अनहोनी सब,
भगवन तेरे नाम,
श्री राधा के चरणों में,
नतमस्तक प्रणाम।।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, October 27, 2012
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Labels: ईश्वर
Friday, October 26, 2012
नेताओं का काम
झेले कैसे-कैसे है,
घोटाले आवाम,
सोंची समझी साजिश है,
नेताओं का काम,
कुछ दिन की भागा-दौड़ी,
सालों तक आराम,
सीधी-सादी जनता है,
समझे ना पैगाम,
धोखा-जिल्लत-मक्कारी,
बेंचे हैं बेदाम,
घूमे पहने खाकी,कर
लाखों कत्लेआम ।।
घूमे पहने खाकी,कर
लाखों कत्लेआम ।।
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, October 26, 2012
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Wednesday, October 24, 2012
बाप के कन्धों पे - हो बेटे का जनाजा
भार इस दुनिया में,
किसका इतना जियादा,
बाप के कन्धों पे,
हो बेटे का जनाजा,
मौत से बद्तर,
है जीने का इरादा,
बदनसीबी कैसी,
है किस्मत ने नवाजा,
दुःख का है साया,
है जख्मों का तकाजा .....
किसका इतना जियादा,
बाप के कन्धों पे,
हो बेटे का जनाजा,
मौत से बद्तर,
है जीने का इरादा,
बदनसीबी कैसी,
है किस्मत ने नवाजा,
दुःख का है साया,
है जख्मों का तकाजा .....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, October 24, 2012
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Monday, October 22, 2012
वहीँ यादें तुम्हारी
वहीँ यादें तुम्हारी,
वहीँ आँखें मेरी नम,
वहीँ बातें तुम्हारी,
वहीँ पलछिन हैं हरदम,
न मुझमे आह है बाकी,
न मुझमे चाह है बाकी,
न पाई जख्म से राहत,
न कोई राह है बाकी,
वहीँ खुशियाँ तुम्हारी,
वहीँ जिन्दा मेरे गम,
वहीँ नींदें तुम्हारी,
वहीँ जागे-२ हम,
न मुझमे रंग हैं बाकी,
न साथी-संग हैं बाकी,
मिला है दर्द चाहत में,
दिलों में जंग हैं बाकी........
वहीँ आँखें मेरी नम,
वहीँ बातें तुम्हारी,
वहीँ पलछिन हैं हरदम,
न मुझमे आह है बाकी,
न मुझमे चाह है बाकी,
न पाई जख्म से राहत,
न कोई राह है बाकी,
वहीँ खुशियाँ तुम्हारी,
वहीँ जिन्दा मेरे गम,
वहीँ नींदें तुम्हारी,
वहीँ जागे-२ हम,
न मुझमे रंग हैं बाकी,
न साथी-संग हैं बाकी,
मिला है दर्द चाहत में,
दिलों में जंग हैं बाकी........
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Monday, October 22, 2012
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Sunday, October 21, 2012
जलता है आफ़ताब
शीतल है बहुत आब,
जलता है आफ़ताब,
जलता है आफ़ताब,
बरसाए जब इताब,
भू का बढ़ जाए ताब,
चाहत का बद गिर्दाब,
बिखरेंगे टूट ख्वाब,
बिखरेंगे टूट ख्वाब,
काँटा है यूँ ख़राब,
नाजुक फंसा गुलाब,
नाजुक फंसा गुलाब,
मन में अल का जवाब,
ढ़ूढ़ो पाओ ख़िताब.
(शब्दों के अर्थ)
आब = पानी
आफ़ताब = सूर्य
इताब = क्रोध
ताब = ताप
बद = बुरा
गिर्दाब = भंवर
ढ़ूढ़ो पाओ ख़िताब.
(शब्दों के अर्थ)
आब = पानी
आफ़ताब = सूर्य
इताब = क्रोध
ताब = ताप
बद = बुरा
गिर्दाब = भंवर
अल = कला
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अरुन शर्मा अनन्त at
Sunday, October 21, 2012
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Friday, October 19, 2012
इश्क की मांग में
दिलों के खेल में,
धोखा भरपूर भरा है,
इश्क की मांग में,
गम का सिंदूर भरा है,
दर्द में टूटता,
आशिक मजबूर भरा है,
वफ़ा की राह में,
काँटों का चूर भरा है,
लुटी हैं कश्तियाँ,
सागर मगरूर भरा है,
जुबां पे प्यार की,
जख्मी दस्तूर भरा है,
गुलों के बाग़ में,
भौंरा मशहूर भरा है,
उम्र की दौड़ में,
दिक्कत नासूर भरा है......
धोखा भरपूर भरा है,
इश्क की मांग में,
गम का सिंदूर भरा है,
दर्द में टूटता,
आशिक मजबूर भरा है,
वफ़ा की राह में,
काँटों का चूर भरा है,
लुटी हैं कश्तियाँ,
सागर मगरूर भरा है,
जुबां पे प्यार की,
जख्मी दस्तूर भरा है,
गुलों के बाग़ में,
भौंरा मशहूर भरा है,
उम्र की दौड़ में,
दिक्कत नासूर भरा है......
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, October 19, 2012
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Wednesday, October 17, 2012
धोखा मुझको हज़ार बक्शा
दिल का जिसको दारोमदार बख्शा,
दिल को उसने मेरे मज़ार बख्शा,
दिल को उसने मेरे मज़ार बख्शा,
दिल से ऐसे है दुश्मनी निभाई,
जख्मी गम का मुझको करार बख्शा,
जख्मी गम का मुझको करार बख्शा,
अपनी जिसको की जिंदगी हवाले,
काँटों को मेरा सब उधार बख्शा,
काँटों को मेरा सब उधार बख्शा,
साँसों का जिसको था खुदा बनाया,
धोखा उसने मुझको हज़ार बख्शा....
धोखा उसने मुझको हज़ार बख्शा....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, October 17, 2012
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Sunday, October 14, 2012
बयां होती नहीं हालत
दिलों के खेल में अक्सर,
लगे है जान की लागत,
लगे है जान की लागत,
दर्द में रो रहा है दिल,
पड़ी है रोज की आदत,
पड़ी है रोज की आदत,
कहीं है दूर कोई तो,
कहीं फिर आज है स्वागत,
कहीं फिर आज है स्वागत,
लुटा है चैन जब से दिल,
लगे हर रात को जागत,
लगे हर रात को जागत,
खड़ा हो चल नहीं सकता,
बचे इतनी नहीं ताकत,
बचे इतनी नहीं ताकत,
जले जब याद दिल में वो,
बयां होती नहीं हालत....
बयां होती नहीं हालत....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Sunday, October 14, 2012
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Friday, October 12, 2012
मेरा दिल है सनकी
मेरा दिल है पागल,
मेरा दिल है सनकी,
मेरा दिल है सनकी,
करता है हरदम ही,
ये दिल अपने मन की,
खतरा है दिल जैसे,
दोस्ती है दुश्मन की,
दोस्ती है दुश्मन की,
सूरत है तुझ जैसी,
इस दिल में दुल्हन की,
इस दिल में दुल्हन की,
मेरा ये पागलपन,
चाहत है धड़कन की,
चाहत है धड़कन की,
मज़बूरी में जीना,
आदत है जीवन की,
आदत है जीवन की,
किस्मत टूटी जैसे,
टूटे हर बरतन की,
टूटे हर बरतन की,
यादों में है अब भी,
माँ मेरे बचपन की,
माँ मेरे बचपन की,
साँसों की बेबसी,
खातिर है यौवन की,
खातिर है यौवन की,
रिमझिम सी बौछारें,
गिरती हैं सावन की,
गिरती हैं सावन की,
नम-२ सी हैं पलकें,
बारिश में नयनन की.
बारिश में नयनन की.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, October 12, 2012
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Wednesday, October 10, 2012
सबके कंधे झुक जाते हैं
ये लौ बुझनी है साँसों की,
जल-2 कर तन के चूल्हों में,
सोने-चाँदी का क्या करना,
इक दिन मिलना है धूलों में,
काँटों से डर कर क्यूँ जीना,
जी भर सोना है फूलों में,
सबके कंधे झुक जाते हैं,
जब कर बढ़ता है मूलों में,
हर पल जीता है मरता है,
झूले जो दिल के झूलों में,
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, October 10, 2012
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Monday, October 8, 2012
मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा
मरा गुमसुम मेरा दिल दिवाना पड़ा,
मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे जल-2 के खुद को बुझाना पड़ा,
मुझे खुद को ही दुश्मन बनाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे जल-2 के खुद को बुझाना पड़ा,
मुझे खुद को ही दुश्मन बनाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे जख्मों से रिश्ता निभाना पड़ा,
मुझे खुद को ही पागल बताना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे नींदों से खुद को उठाना पड़ा,
मुझे ख्वाबों को जिन्दा जलाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे अंखियों से सागर बहाना पड़ा,
मुझे खुशियों से दामन छुडाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
मुझे धड़कन पे ताला लगाना पड़ा,
मुझे साँसों को मरना सिखाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
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अरुन शर्मा अनन्त at
Monday, October 08, 2012
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Saturday, October 6, 2012
जलता है मसाल-दिल पर
छाया है अकाल -दिल पर,
पाला है बवाल - दिल पर,
बैठा है मलाल - दिल पर,
लाखों हैं सवाल -दिल पर,
यादें हैं हलाल -- दिल पर,
तेरा है खयाल -- दिल पर,
देखा है कमाल --दिल पर,
जलता है मसाल-दिल पर,
जख्मों की मजाल-दिल पर,
करता है धमाल --दिल पर,
मारे है कुदाल ---दिल पर,
दिखता है पताल - दिल पर,
अश्कों का उबाल - दिल पर,
आँखें हैं निहाल ---दिल पर,
आया है भूचाल ---दिल पर,
मौसम है गुलाल --दिल पर.
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, October 06, 2012
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Thursday, October 4, 2012
पागल आशिक हूँ मैं दिलजला दिल का
टूटा टूटा सा है ----- हौंसला दिल का,
जाने कैसा है ये --- सिलसिला दिल का,
जाने कैसा है ये --- सिलसिला दिल का,
होता खुशियों से है --- फासला दिल का,
सोंचे जब-2 भी दिल है -- भला दिल का,
सोंचे जब-2 भी दिल है -- भला दिल का,
तिनका-तिनका बिखरी -- जिंदगी मेरी,
गम ये दिल को है, दिल से खला दिल का,
गम ये दिल को है, दिल से खला दिल का,
जीता - मरता हूँ ------ तेरे खयालों में,
पागल आशिक हूँ मैं - दिलजला दिल का,
पागल आशिक हूँ मैं - दिलजला दिल का,
साँसे ठहरीं हैं ------ धड़कन जुदा सी है,
बहता आँखों से है ---- जलजला दिल का,
बहता आँखों से है ---- जलजला दिल का,
जिद करता है दिल --- भूलूं न तुझको मैं,
चुभता मुझको है ये ----फैसला दिल का,
चुभता मुझको है ये ----फैसला दिल का,
ढूंढा पर दिल का --- मिलता नहीं है हल,
कितना मुस्किल है ये -- मामला दिल का,
कितना मुस्किल है ये -- मामला दिल का,
फिरता रहता हूँ ------ मैं बावरा होकर,
जादू ऐसा है दिल पर --- चला दिल का,
उगता सूरज है दिल में -- ढला दिल का,
कोना-कोना है बुझके --- जला दिल का,
जादू ऐसा है दिल पर --- चला दिल का,
उगता सूरज है दिल में -- ढला दिल का,
कोना-कोना है बुझके --- जला दिल का,
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, October 04, 2012
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Monday, October 1, 2012
मुहब्बत की कारीगरी देखी
तबियत अपनी - जब हरी देखी,
मुहब्बत की - - - कारीगरी देखी,
मुहब्बत की - - - कारीगरी देखी,
उठा चाहत का -- जब पर्दा, मैंने,
नमी आँखों में थी --- भरी देखी,
नमी आँखों में थी --- भरी देखी,
भुला दूँ तुझको -- याद या रक्खूं,
दर्द उलझन --- हालत बुरी देखी,
दर्द उलझन --- हालत बुरी देखी,
खफा है धड़कन - सांस अटकी है,
गले में हलचल ---- खुरदरी देखी,
गले में हलचल ---- खुरदरी देखी,
सुर्ख रातें हैं ------ दिन बुझा सा है,
सुहानी शम्मा भी ------ मरी देखी,
सुहानी शम्मा भी ------ मरी देखी,
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अरुन शर्मा अनन्त at
Monday, October 01, 2012
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