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Saturday, March 30, 2013

मनीषा के जन्मदिवस पर गुरुदेव श्री शास्त्री सर का अनमोल उपहार

"मूल पोस्ट लिंक उच्चारण"
"अरुण की जीवनसंगिनी मनीषा का जन्मदिन"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आज
अपने पुत्रतुल्य शिष्य
अरुण शर्मा से फेसबुक पर बात हो रही थी
बातों-बातों में राज़ खुल ही गया कि
आज उनकी जीवन संगिनी 
श्रीमती मनीषा का जन्म दिन है।
आशीर्वाद के रूप में कुछ पंक्तियाँ बन गयीं हैं!
प्यार से खाओ-खिलाओअब मिठाई।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।

काटने का केक को अब चलन छोड़ो,
अब पुरातन सभ्यता की ओर दौड़ो,
यज्ञ में सद्भावनाएँ हैं समायी।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।

मोमबत्ती मत जलाना और बुझाना,
नेह से तुम आज घृतदीपक जलाना,
अरुण के घर में खुशी की घड़ी आयी।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।

प्यार से मनुहार से मन जीत लेना,
गुरुजनों-घर के बड़ों को मान देना,
अरुण के मन को मनीषा खूब भायी।
जन्मदिन की है मनीषा को बधायी।।



कुछ मित्रों के आग्रह पर गुरुदेव श्री के द्वारा की गई हुबहू वही पोस्ट यहाँ लिंक की गई है.

Thursday, March 28, 2013

दो गज़लें

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल मेरी दो गज़लें.

................... 1 ...................

जीजा बुरा न मानो होली बता के मारा,
सूरत बिगाड़ डाली कीचड़ उठा के मारा,

खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
सर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,

काजल कभी तो शैम्पू बिंदी कभी लिपिस्टिक,
बीबी ने बैंक खाता खाली करा के मारा,

अंदाज था निराला पहना था चस्मा काला,
इक आँख से थी कानी मुझको पटा के मारा,

गावों की छोरियों को मैंने बहुत पटाया,
शहरों की लड़कियों ने बुद्धू बना के मारा ....

................... २ ...................

बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,

जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,

उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
मनमोहनी ने नस्तर मुझको रिझा के मारा,

आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा

तकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....

Monday, March 25, 2013

बुरा न मानो होली है

............. बुरा न मानो होली है ............

रंगों की बदरी छाई है, होली की बारिश आई है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

शास्त्री सर की कविता रंगू, रविकर सर की कुण्डलियाँ,
निगम सर के गीत भिगाऊं, धीरेन्द्र सर जी की गलियाँ,
जरा हँसी मजाक ठिठोली है, यह गुरु शिष्य की होली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

प्रिय संदीप मनोज सखा की ग़ज़लों को भंग पिलाऊं मैं
शालिनी जी की अनुभूति को लाल गुलाल लगाऊं मैं,
भरी रंगों से ही झोली है, यह मित्र सखा की होली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

तरह तरह के रंग रंगीले, कुछ नीले हैं कुछ पीले हैं,
एक जैसी सबकी सूरत है, सब भीगे हैं सब गीले हैं,
मस्त पवन भी डोली है, झूमी गाती हर टोली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,,

हर चेहरा रंगों वाला है, चाहे गोरा है या काला है,
यह प्रेम जुदा है गहरा है, खुशियों का घर-२ पहरा है,
फागुन की मीठी बोली है, मनमौजी भंग की गोली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है ....

Saturday, March 23, 2013

मत्तगयन्द' सवैया

मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ

1.

नाचत भंग पिए जन हैं, भर रंग फिरे हर सूरत भोली,
रूप स्वरुप खिले गुल से, मन मोर निहार रहा हर टोली,
लाल गुलाल कपोल सजे, जब मेल मिलाप करें हमजोली,
ढोल बजे हुडदंग मचे, घर स्वच्छ करे यह पावन होली .....



२.

रंग अबीर लगाय रहे भर भंग पियें जन जीभर प्याला,
मित्र सखा मिल घूम रहे हर रंग खिला हर रूप निराला,
प्रेम लुटाय रहे सबहीं मिल खाय रहे सब प्रेम निवाला,
मेल मिलाप लुभाय रहा मन और बढ़ाय रहा उजियाला..

Thursday, March 21, 2013

संसार आफतों का भण्डार हो चला है

काटों भरी डगर है जीवन का पथ खुदा है,
गंभीर ये समस्या हल आज लापता है,

अंधा समाज बैरी इंसान खुद खुदी का,
अनपढ़ से भी है पिछड़ा, वो जो पढ़ा लिखा है,

धोखाधड़ी में अक्सर मसरूफ लोग देखे,
ईमान डगमगाया इन्‍सां लुटा पिटा है,

तकदीर के भरोसे लाखों गरीब बैठे,
हिम्मत सदैव हारें इनकी यही खता है,

अपमान नारियों का करता रहा अधर्मी,
संसार आफतों का भण्डार हो चला है...

Sunday, March 17, 2013

यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते

ग़ज़ल
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
बह्र : हजज मुसम्मन सालिम

कभी सच्ची मुहब्बत को दिवाने दिल नहीं पाते,
यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते,

रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
मुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,

डरा सहमा रहेगा उम्रभर ये दिल मेरा यूँ ही,
तेरी फितरत से वाकिफ जबतलक हम हो नहीं जाते,

चली है याद फिर मेरी उड़ाने नींद रातों की,
जगे हैं नैन जबसे ख्वाब के बादल नहीं छाते,


मुकम्मल इश्क की कोई कहानी कब हुई यारों,
नहीं लैला नहीं मजनू नहीं रिश्ते नहीं नाते..

Friday, March 15, 2013

भयभीत बेटियों का हर तात जागता है

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
 
दिन रात मुश्किलों से जीवन का वास्ता है,
साँसों के साथ चलता मरने का सिलसिला है,

महका गुलों से उपवन मौसम हुआ सुहाना,
नींदों के बिना भौंरा अब रात काटता है,

फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
मेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,

मुरझाये पेड़ पौधे सूखा हरा बगीचा
मौसम ने कर लिया जो पतझड़ का नास्ता है,

फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
भयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...

Wednesday, March 13, 2013

चाहत अथाह है

ना देखा आपने,
चाहत अथाह है,

मुखड़ा आपका,
रखती निगाह है,

मैं पूजूं आपको,
दिल की सलाह है,

मेरी तो आपमें,
मंजिल है राह है,

रजा में आपकी,
सब कुछ पनाह है,

सिर्फ ये दिल नहीं,
जान भी तबाह है.

Monday, March 11, 2013

मौत सबकी समय के निशाने में है

गैरियत आज जालिम ज़माने में है,
मौत सबकी समय के निशाने में है,

हर दरिंदा यहाँ अब यही सोचता,
सुख मज़ा नारियों को सताने में है,

सुर्ख़ियों में वो छाये गलत काम कर,
नाम अच्छों का गुम अब घराने में है,

कब ठहरती वफ़ा है अधिक देर तक,
बेवफाई का मौसम फ़साने में है,

बेंच कर वो शरम आगे जाता रहा,
मेरी मंजिल गुमी हिचकिचाने में है....

Sunday, March 10, 2013

'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
दिन रात मुश्किलों का अब साथ काफिला है
'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

आराम ना मयस्सर कुछ वक़्त का किसी को,
कोई तमाम लम्हें फुर्सत से फांकता है,

इंसान ये वही है जो मैंने था बनाया,
ताज्जुब भरी नज़र से भगवान ताकता है,

रस्मो रिवाज बदले बदली नज़र की फितरत,
हर ओर बह रहा अब आफत है जलजला है,

मशरूफ है जमाना जीने की चाह में पर,
काँधे पे रखके अपनी ही लाश भागता है. ..
(आज मेरा ब्लॉग एक साल का हो गया है )

Wednesday, March 6, 2013

कुण्डलिया

भारत की सरकार में , शकुनी जैसे लोग,
आम आदमी के लिए , नित्य परोसें रोग

नित्य परोसें रोग , नहीं मिलता छुटकारा,
ढूँढे  कौन  उपाय  ,  हुआ  मानव  बेचारा 

महिलायें हर रोज , अपना मान हैं हारत,
बदले रीति रिवाज, बदलता जाए भारत...

Friday, March 1, 2013

चंद - पंक्तियाँ

1. 
मेरी कीमत लगाता बजारों में था.
वो जो मेरे लिए इक हजारों में था.
कब्र की मुझको दो गज जमीं ना मिली,
आशियाँ उसका देखो सितारों में था.
 2. 
लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए,

3. 
 गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
उनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,
4.

गुलशन में फूल मेरे खिलते हैं आपसे,
ख्वाबों में रोज घंटों मिलते हैं आपसे,
खिल के है मुस्कुराई थी मायूस जिंदगी,
सदियों के जख्म गहरे सिलते हैं आपसे..

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