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AnitaNovember 3, 2012 at 11:37 AM
बढ़िया रचना !
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पता नहीं कैसे जीते हैं लोग.... जिन्हें चाहत से चाहत नहीं होती...Reply
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संगीता पुरीNovember 3, 2012 at 12:58 PM
बढिया लिखा आपने ..
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madhu singhNovember 3, 2012 at 5:36 PM
kya khoob behtareen prastuti
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बंदिश समझो बन्दगी, इधर उधर मत ताक ।
ReplyDeleteबहु-तेरे है ताक में, तेरे आशिक-काक ।
तेरे आशिक-काक, रंजिशे रविकर रखते ।
रही उन्हीं की धाक, हमेशा साजिश करते ।
बारिस में मत भीग, मिलेगा उन्हें बहाना ।
मत कर जिद नादिरे, प्यार तेरा है पाना ।।
वाह सर वाह मजा आ गया आपकी रोचक टिप्पणियां जब भी मिलती हैं ह्रदय गद-2 हो जाता है।
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया रविकर सर
Deleteबहुत सुन्दर अरुन जी...मन खुश हो गया पढ़ कर....बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया संजय भाई
Deleteतेरी यादों का हर पल, मुझे बेचैन करता है,
ReplyDeleteमैं पागल कैसे होता, अगर साजिश नहीं होती,.... बेहद खूबसूरत गज़ल
हर पल तेरी याद ने यूँ दीवाना बना रखा है
सारे आलम से ही बेगाना बना रखा है
करने को सुबह-शाम,तेरी ही इबादत को ए सनम
अपनी आँखों में हमने सनमखाना बना रखा है
वाह शालिनी जी क्या बात है, उम्दा क्या कहना आपका
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