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Saturday, October 27, 2012

कैसे मिलते राम

मारा-मारा फिरता है,
प्राणी चारों धाम,

मन के भीतर खोजा ना,
कैसे मिलते राम,

जीवन कैसा जीता है,
प्राणी हो गुमनाम,

एक दूजे के हिस्से हैं,
श्री राधे-घनश्याम,

किस्मत अपनी रूठे तो,
बनता बिगड़े काम,

होनी-अनहोनी सब,
भगवन तेरे नाम,

श्री राधा के चरणों में,
नतमस्तक प्रणाम।।

24 comments:

  1. रविकरOctober 27, 2012 at 6:01 PM

    सुन्दर प्रस्तुति |
    अरुण जी बधाई ||

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 27, 2012 at 6:03 PM

      बहुत-2 शुक्रिया रविकर सर.

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  • Kailash SharmaOctober 27, 2012 at 7:47 PM

    मारा-मारा फिरता है,
    प्राणी चारों धाम,

    मन के भीतर खोजा ना,
    कैसे मिलते राम,

    ....शास्वत सत्य..बहुत सार्थक रचना..

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 28, 2012 at 11:08 AM

      तहे दिल से शुक्रिया कैलाश सर

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  • संध्या शर्माOctober 27, 2012 at 11:34 PM

    सही बात है....
    मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे.
    मैं तो तेरे पास में ना तीरथ में ,
    ना मूरत में ना एकांत निवास में
    ना मन्दिर में , ना मस्जिद में ना काबे कैलास में
    बहुत खूबसूरत रचना

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 28, 2012 at 11:08 AM

      धन्यवाद संध्या जी.

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    Reply
  • Reena MauryaOctober 28, 2012 at 12:27 PM

    मन के भीतर खोजा ना,
    कैसे मिलते राम,
    बात तो सही है...
    बहुत ही अच्छी रचना,,
    :-)

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 28, 2012 at 12:52 PM

      शुक्रिया रीना जी

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  • mridula pradhanOctober 28, 2012 at 2:02 PM

    sunder rachna.....

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 28, 2012 at 3:31 PM

      शुक्रिया मृदुला जी.

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    Reply
  • Virendra Kumar SharmaOctober 28, 2012 at 8:00 PM




    रविवार, 28 अक्तूबर 2012
    तर्क की मीनार
    http://veerubhai1947.blogspot.com

    भाव अर्थ और संगीत की त्रिवेणी है यह गीत .पूर्ण अन्विति लिए परस्पर .

    कैसे मिलते राम
    मारा-मारा फिरता है,
    प्राणी चारों धाम,

    मन के भीतर खोजा ना,
    कैसे मिलते राम,

    जीवन कैसा जीता है,
    प्राणी हो गुमनाम,

    एक दूजे के हिस्से हैं,
    श्री राधे-घनश्याम,

    किस्मत अपनी रूठे तो,
    बनता बिगड़े काम,

    होनी-अनहोनी सब,
    भगवन तेरे नाम,

    श्री राधा के चरणों में,
    नतमस्तक प्रणाम।।

    भैया तेरे गीतों को ,

    नित वन्दन अविराम .

    हमरे शतश : प्रणाम .

    ReplyDelete
    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 29, 2012 at 1:32 PM

      आदरणीय वीरेंद्र सर आपकी टिपण्णी ने गद -गद कर दिया बहुत-2 आभार

      Delete
    Reply
  • संजय भास्करOctober 28, 2012 at 11:27 PM

    मन के भीतर खोजा ना,
    कैसे मिलते राम,

    ... सत्य सार्थक रचना के लिए दिल से बधाई..!!!

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 29, 2012 at 1:30 PM

      शुक्रिया संजय भाई, बधाई स्वीकार्य है आपको अनेक-2 धन्यवाद

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    Reply
  • प्रतिभा सक्सेनाOctober 29, 2012 at 12:40 AM

    कस्तूरी कुंडल बसे ,मृढूँढे बन माँहिं ..!

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 29, 2012 at 1:29 PM

      सत्य कहा है आदरणीया, तहे दिल से शुक्रिया

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    Reply
  • shaliniOctober 29, 2012 at 6:23 PM

    जिन खोजा, तिन पाइयां..... बस जरूरत है समर्पण भाव की... आपको भी ज़रूर सफलता मिलेगी... बस प्रयास जारी रखें.
    शुभकामनाएँ!

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 31, 2012 at 11:05 AM

      बहुत-2 शुक्रिया शालिनी जी

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    Reply
  • dheerendra bhadauriyaOctober 29, 2012 at 9:40 PM

    इस सुंदर रचना के दिल से बधाई स्वीकारे अरुण जी,,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 31, 2012 at 11:11 AM

      शुक्रिया आदरणीय धीरेन्द्र सर

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    Reply
  • dheerendra bhadauriyaOctober 29, 2012 at 9:41 PM

    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

    ReplyDelete
    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माNovember 5, 2012 at 11:18 AM

      बहुत-2 शुक्रिया धीरेन्द्र सर

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    Reply
  • Rohitas ghorelaOctober 30, 2012 at 10:00 PM

    हर बार की तरह ये पोस्ट भी बहुत अच्छी है.
    बधाई स्वीकार करें !!!

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 31, 2012 at 11:11 AM

      शुक्रिया मित्र

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