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dheerendra bhadauriyaOctober 29, 2012 at 9:41 PMबहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,
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RECENT POST LINK...: खता,,,Reply 
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Rohitas ghorelaOctober 30, 2012 at 10:00 PMहर बार की तरह ये पोस्ट भी बहुत अच्छी है.
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बधाई स्वीकार करें !!!Reply 
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सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteअरुण जी बधाई ||
बहुत-2 शुक्रिया रविकर सर.
Deleteमारा-मारा फिरता है,
ReplyDeleteप्राणी चारों धाम,
मन के भीतर खोजा ना,
कैसे मिलते राम,
....शास्वत सत्य..बहुत सार्थक रचना..
तहे दिल से शुक्रिया कैलाश सर
Deleteसही बात है....
ReplyDeleteमोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे.
मैं तो तेरे पास में ना तीरथ में ,
ना मूरत में ना एकांत निवास में
ना मन्दिर में , ना मस्जिद में ना काबे कैलास में
बहुत खूबसूरत रचना
धन्यवाद संध्या जी.
Deleteमन के भीतर खोजा ना,
ReplyDeleteकैसे मिलते राम,
बात तो सही है...
बहुत ही अच्छी रचना,,
:-)
शुक्रिया रीना जी
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