Thursday, February 28, 2013
राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...
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अरुन शर्मा at
Thursday, February 28, 2013
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Sunday, February 24, 2013
ग़ज़ल : जिद में
1. बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
दिलों की कहानी बनाने की जिद में,
लुटा दिल मेरा प्यार पाने की जिद में,
बिना जिसके जीना मुनासिब नहीं था,
उसे खो दिया आजमाने की जिद में,
मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,
घुटन बेबसी लौट घर फिर से आई,
रहा कुछ नहीं सब बचाने की जिद में,
तमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....
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अरुन शर्मा at
Sunday, February 24, 2013
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Labels: ग़ज़ल
Thursday, February 21, 2013
ग़ज़ल : समन्दर
सभी को लगे खूब प्यारा समन्दर,
सुहाना ये नमकीन खारा समन्दर,
नसीबा के चलते गई डूब कश्ती,
मगर दोष पाये बेचारा समन्दर,
दिनों रात लहरों से करता लड़ाई,
थका ना रुका ना ही हारा समन्दर,
कई राज गहरे छुपाकर रखे है,
नहीं खोलता है पिटारा समन्दर,
सुबह शाम चाहे कड़ी दोपहर हो,
हजारों का इक बस सहारा समन्दर.
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अरुन शर्मा at
Thursday, February 21, 2013
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Labels: ग़ज़ल
Sunday, February 17, 2013
बसंत - गीत
जब ऋतुराज विहँस आता है,तन-मन निखर-निखर जाता है
पुलकित होकर मन गाता है , प्यारा यह मौसम भाता है
पुलकित होकर मन गाता है , प्यारा यह मौसम भाता है
अमराई बौराई फिर से , हरियाली लहराई फिर से,
कोयल फिर उपवन में बोले, मीठी-मीठी मिश्री घोले,
हृदय लुटाता प्रणय जताता, भ्रमर कली पर मंडराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
बाली गेहूँ की लहराई, झूमी मदमाती पुरवाई,
पागल है भौंरा फूलों में, झूले मेरा मन झूलों में,
मस्ती में सरसों का सुन्दर, पीला आँचल लहराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
पेड़ों में नवपल्लव साजे, ढोल मँजीरा घर-घर बाजे,
महकी फूलों की फुलवारी, सजी धरा दुल्हन सी प्यारी,
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
पेड़ों में नवपल्लव साजे, ढोल मँजीरा घर-घर बाजे,
महकी फूलों की फुलवारी, सजी धरा दुल्हन सी प्यारी,
धीमी-मध्यम तेजी गति से, बादल नभ में मँडराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है.
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अरुन शर्मा at
Sunday, February 17, 2013
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Labels: बसंत गीत
Wednesday, February 13, 2013
लुटा है चमन मुस्कुराने की जिद में
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
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Wednesday, February 13, 2013
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Labels: ग़ज़ल
Thursday, February 7, 2013
समंदर बचाना
नया इक फ़साना,
बुने दिल दिवाना,
दुखों से लबालब,
भरा है जमाना,
न कर दोस्ती दिल,
न दुश्मन बनाना,
कहाँ हो सुनो भी,
जरा पास आना,
कहो ठोकरों से,
कि चलना सिखाना,
बही हैं निगाहें,
समंदर बचाना,
नहीं प्रेम रस तो,
जहर ही पिलाना...
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अरुन शर्मा at
Thursday, February 07, 2013
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Labels: ग़ज़ल
Monday, February 4, 2013
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है
.................ग़ज़ल.................
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,
इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,
कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,
खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...
(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,
इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,
कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,
खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...
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अरुन शर्मा at
Monday, February 04, 2013
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Labels: ग़ज़ल
Friday, February 1, 2013
बुना कैसे जाये फ़साना न आया
(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२)
बुना कैसे जाये फ़साना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
जहर से भरा तीर नैनों से मारा,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,
किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,
बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,
मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,
समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.
बिना डुबकियों के नहाना न आया.
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अरुन शर्मा at
Friday, February 01, 2013
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