वहीँ आँखें मेरी नम,
वहीँ बातें तुम्हारी,
वहीँ पलछिन हैं हरदम,
न मुझमे आह है बाकी,
न मुझमे चाह है बाकी,
न पाई जख्म से राहत,
न कोई राह है बाकी,
वहीँ खुशियाँ तुम्हारी,
वहीँ जिन्दा मेरे गम,
वहीँ नींदें तुम्हारी,
वहीँ जागे-२ हम,
न मुझमे रंग हैं बाकी,
न साथी-संग हैं बाकी,
मिला है दर्द चाहत में,
दिलों में जंग हैं बाकी........
वहीं खुशियां तुम्हारी,
प्रत्युत्तर देंहटाएंवहीं जिन्दा मेरे गम,
वाह ... बहुत खूब।
शुक्रिया सदा जी
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प्रत्युत्तर देंहटाएंशुभकामनायें ||
तहे दिल से स्वीकार्य है आदरणीय रविकर सर, यूँ ही अपना आशीष बनाये रखिये.
हटाएंवहीँ खुशियाँ तुम्हारी,
प्रत्युत्तर देंहटाएंवहीँ जिन्दा मेरे गम,
वहीँ नींदें तुम्हारी,
वहीँ जागे-२ हम,
बहुत हि अच्छी पंक्तीया
सुंदर रचना...
:-)
आपका बहुत-2 शुक्रिया रीना जी
हटाएंbahut sundar lagi aapki yah post...seedhe dil se.
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत-2 शुक्रिया शालिनी जी आपका, इस सराहना और स्नेह के लिए
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