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Rohitas ghorelaJanuary 9, 2013 at 7:33 PM
वाह बेहद शानदार गज़ल
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varun kumarJanuary 10, 2013 at 6:15 AM
बाह बाह वाह बहुत बहूत बहुत ...अच्छा कमाल का सोच ..काश भगवान मुल्तानी मिट्टी के बिना बनाये तो किसी को घमंड ना हो रेगिस्तानी से बनाये तो चिँता ना हो बलुआही से बनाये तो गम ना हो कालीमिट्टी से बनाये तो किसी से कम ना हो ...आज भगवान को अपनी मेड इन इंसान प्रणाली तो हर हाल मे सुधारनी होगी..
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संजय भास्करJanuary 10, 2013 at 1:45 PM
वाह....सटीक बहुत ही प्रभावी.. !!!
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Aamir DubaiJanuary 10, 2013 at 6:03 PM
कुछ उर्दू और कुछ हिंदी में एक रचना। जो अपने अन्दर एक पैगाम लिए हुए है।
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अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)January 10, 2013 at 7:42 PM
खोटे - सिक्के ढल रहे सारे के सारे
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सोचते क्या हो, अजी ! टकसाल बदलो
शानदार गज़ल..............
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धीरेन्द्र सिंह भदौरियाJanuary 10, 2013 at 8:14 PM
मन को उद्धेलित करती प्रभावी रचना,,,,बधाई
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बढ़िया उलाहना |
ReplyDeleteबधाई अरुण जी ||
आभार गुरुदेव श्री रविकर सर.
Deletebade hi andaj se aap ne apni bat kah diya*** behatreen
ReplyDeleteआभार आदरणीया बहुत - बहुत शुक्रिया
Deleteलाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
ReplyDeleteसरकार है बेकार शासनकाल बदलो,..
ये कलाम तो हम सब को मिल के करना है ... पता नहीं कब जागेंगे ...
आभार दिगम्बर सर
Deleteनारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
ReplyDeleteकमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,
लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,
बढ़िया रिज़ोल्व है संकल्प है आपका .
नारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
ReplyDeleteकमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,
लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,
बढ़िया रिज़ोल्व है संकल्प है आपका .
ram ram bhai
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बुधवार, 9 जनवरी 2013
शर्म इन्हें फिर भी नहीं आती
http://veerubhai1947.blogspot.in/
धन्यवाद आदरणीय वीरेंद्र सर
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