जाने कैसा है ये --- सिलसिला दिल का,
सोंचे जब-2 भी दिल है -- भला दिल का,
गम ये दिल को है, दिल से खला दिल का,
पागल आशिक हूँ मैं - दिलजला दिल का,
बहता आँखों से है ---- जलजला दिल का,
चुभता मुझको है ये ----फैसला दिल का,
कितना मुस्किल है ये -- मामला दिल का,
जादू ऐसा है दिल पर --- चला दिल का,
उगता सूरज है दिल में -- ढला दिल का,
कोना-कोना है बुझके --- जला दिल का,
वाह ... बेहतरीन
प्रत्युत्तर देंहटाएंवाह
प्रत्युत्तर देंहटाएंक्या पागलपन है |
यहाँ तो जन जन है |
यही दस्तूर है रविकर
है ना,
तू सजन है ||
वाह रविकर सर क्या बात है उम्दा पंक्तियाँ कही हैं आपने, मेरी रचना को एक नया आयाम मिल गया
हटाएंहोय पेट में रेचना, चना काबुली खाय ।
प्रत्युत्तर देंहटाएंउत्तम रचना देख के, चर्चा मंच चुराय ।
शुक्रिया सर बहुत-२ शुक्रिया
हटाएंnaya andaaz-e-bayan hai .....apke dil ka.
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुक्रिया अनामिका जी
हटाएंसुंदर मनभावन प्रस्तुति |
प्रत्युत्तर देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
करुण पुकार
शुक्रिया प्रदीप भाई
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