भीग-भीग बरसात में, सड़ता रहा अनाज,
गूंगा बना समाज है, अंधों का है राज,
देखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
धनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,
दौलत की लालच हुई, बेंचा सर का ताज,
अब सुनता कोई नहीं, भूखों की आवाज,
कहते अनाज देवता, फिर भी यह अपमान,
सच बोलूं भगवान मैं, बदल गया इंसान,
काम न आया जीव के, सरकारी यह भोज,
पाते भूखे पेट जो, जीते वे कुछ रोज...
बेहतरीन,सुंदर दोहे ,,,,बधाई अरुण जी
ReplyDeleterecent post: वजूद,
आभार आदरणीय धीरेन्द्र सर
Deleteबहुत उम्दा दोहे....एक सार्थक विचारणीय विषय पर लिखने अच्छा प्रयास
ReplyDeleteधन्यावाद शालिनी जी
Deleteक्या करे कोई बोलता है उसी को बन्द कर दिया जाता है बस
ReplyDeleteयुनिक तकनीकी ब्लाlग
सत्य है विनोद भाई
Deleteदेखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
ReplyDeleteधनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,
धनी रोटियाँ फेंकता ,दीन हीन मोहताज़
बढ़िया प्रस्तुति .
हार्दिक आभार आदरणीय वीरेंद्र सर
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