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Thursday, December 20, 2012

ओ. बी. ओ. "चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक-21 के लिए लिखी रचना

भीग-भीग बरसात में, सड़ता रहा अनाज,
गूंगा बना समाज है, अंधों का है राज,

देखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
धनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,

दौलत की लालच हुई, बेंचा सर का ताज,
अब सुनता कोई नहीं, भूखों की आवाज,

कहते अनाज देवता, फिर भी यह अपमान,
सच बोलूं भगवान मैं, बदल गया इंसान,

काम न आया जीव के, सरकारी यह भोज,
पाते भूखे पेट जो, जीते वे कुछ रोज...

16 comments:

  1. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाDecember 20, 2012 at 7:26 PM

    बेहतरीन,सुंदर दोहे ,,,,बधाई अरुण जी

    recent post: वजूद,

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 21, 2012 at 1:02 PM

      आभार आदरणीय धीरेन्द्र सर

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  • shaliniDecember 20, 2012 at 10:53 PM

    बहुत उम्दा दोहे....एक सार्थक विचारणीय विषय पर लिखने अच्छा प्रयास

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 21, 2012 at 1:02 PM

      धन्यावाद शालिनी जी

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  • विनोद सैनीDecember 21, 2012 at 11:16 AM

    क्‍या करे कोई बोलता है उसी को बन्‍द कर दिया जाता है बस
    युनिक तकनीकी ब्लाlग

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 21, 2012 at 1:03 PM

      सत्य है विनोद भाई

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  • Virendra Kumar SharmaDecember 21, 2012 at 12:50 PM

    देखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
    धनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,

    धनी रोटियाँ फेंकता ,दीन हीन मोहताज़

    बढ़िया प्रस्तुति .

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 21, 2012 at 1:03 PM

      हार्दिक आभार आदरणीय वीरेंद्र सर

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  • संध्या शर्माDecember 21, 2012 at 3:54 PM

    यथार्थवादी सटीक रचना... यही हो रहा है सरकारी गोदामों में अनाज सड़ जाता है और कहीं गरीब भूख से मर जाता है...

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 22, 2012 at 12:16 PM

      आभार संध्या दी.

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  • अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)December 22, 2012 at 8:06 AM

    बदहाली पर अन्न की ,सुंदर दोहा छंद
    ऋतु हेमंत बिखेरते,मधुर-मधुर मकरंद ||
    ****************************
    बारिश में सड़ता रहा,किसे मगर परवाह
    नम होते लखकर नयन,अधरों पर है आह ||
    ****************************

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 22, 2012 at 12:16 PM

      वाह क्या बात है सर धन्यवाद

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  • Reena MauryaDecember 22, 2012 at 7:42 PM

    हकीकत से रूबरू कराती रचना...
    यही तो हो रहा है....

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:35 AM

      तहे दिल से शुक्रिया रीना जी

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  • संजय भास्करDecember 25, 2012 at 3:04 PM

    सच बोलूं भगवान मैं, बदल गया इंसान,
    .100 % sach

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 26, 2012 at 11:36 AM

      आभार संजय भाई

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