ग़ज़ल
वज्न : 1222 , 1222
कभी पैसों की किल्लत तो,
कभी खाने के लाले हैं,
हमीं तो इक नहीं जख्मी,
हजारों दर्द वाले हैं,
कई हैरान रातों से,
किसी के दिन भी काले हैं,
सभी अच्छे यहाँ देखो,
मुसीबत के हवाले हैं,
गुनाहों के सभी मालिक,
कतल का शौक पाले हैं,
धुले हैं दूध के लेकिन,
नियत में खोट जाले हैं,
शराफत में शरीफों की,
जुबां पे आज ताले हैं,
बुरा ना मानना यारों,
जरा कातिब दिवाले हैं.
कातिब - लेखक, लिपिक
ReplyDeleteमजा आ गया भाई-
कातिब का अर्थ लिखिए-
आदरणीय सर प्रणाम, आपको मज़ा आया मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा, कातिब का अर्थ लेखक होता है. सादर
ReplyDeleteशराफत में शरीफों की जुबां पर ताले है,क्या बात है ,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteआभार राजेंद्र भाई
Deleteअरुण शर्मा ! जमाने के
ReplyDeleteचलन कितने निराले है |
जिन्हें फूलों में पाला था
वही पत्थर उछाले हैं |
वाह गुरुदेव श्री आखिर आप आ ही गए अँखियाँ तरस जाती हैं मन बेचैन हो जाता है आपका प्रतिउत्तर पाने के लिए, हार्दिक आभार सर.
Deleteशराफत में शरीफों की,
ReplyDeleteजुबां पे आज ताले हैं,
बहत खूब कही है गजल आपने छोटी बहर बड़ा सन्देश .
आभार सर
Deleteवाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
लाजबाब गजल, छोटी बहर बड़ा सन्देश,
ReplyDeleteवाह !!! क्या बात है,अरुन जी,,,,,,,बधाई,,,
.recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने दिल खुश हो गया पढ़कर | आभार |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
कई हैरान रातों से
ReplyDeleteकिसी के दिन भी काले हैं ...
बहुत खूब...लाजवाब अभिव्यक्ति...
वाह....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल...
सटीक शेर कहे हैं...
अनु
बहुत बाध्य अरुण जी ...बहुत अच्छे शेर कहे हैं आपने.
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