ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत मेरी ग़ज़ल :-
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)
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जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,
यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,
मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,
अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,
जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..