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Sunday, July 28, 2013

ग़ज़ल : तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत मेरी ग़ज़ल :-
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)

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जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,

यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,

मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,

अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,

जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..

Friday, July 19, 2013

ग़ज़ल : अजब ये रोग है दिल का

पेश-ए-खिदमत है छोटी बहर की ग़ज़ल.

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222

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परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,

अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,

दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,

कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,

हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,

नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,

उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
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अरुन शर्मा 'अनन्त'

Thursday, July 11, 2013

पुत्रीरूपी रत्न की प्राप्ति

लावन्या

गूँजी घर किलकारियाँ, सुबह शाम दिन रात ।
कन्यारूपी रत्न की, मिली हमें सौगात ।।

उम्र लगा की बढ़ गई, होता है आभास ।
जबसे पापा हूँ बना, लगता हूँ कुछ खास ।। 


बिन मांगे ही फल मिला, पूरी हुई मुराद ।
जीवन में है बढ़ गई, ख़ुशी की तायदाद ।।

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