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Saturday, December 8, 2012

कारवाँ ठंडी हवा का

कारवाँ ठंडी हवा का आ गया है।
धुंध हल्का कोहरा भी छा गया है।। 1
 
राह नज़रों को नहीं आती नज़र अब।
कौन है जो रास्तों को खा गया है।। 2
 
पांव ठंडे, हाँथ ठंडे - थरथराते।
जान पर जुल्मी कहर बरसा गया है।। 3
 
पास घर दौलत नहीं रोटी न कपड़े।
कुछ नसीबा मुश्किलों को भा गया है।। 4
 
घिर रही घनघोर काली है घटा फिर।
वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
 
बोल बाला मर्ज का फिर से जगा है।
सर्द सोया दर्द भी भड़का गया है।। 6

10 comments:

  1. Virendra Kumar SharmaDecember 8, 2012 at 1:29 PM

    घिर रही घनघोर काली है घटा फिर।
    वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है।। 5
    behatreen

    बेहतरीन आनुप्रासिक प्रस्तुति .शुक्रिया आपकी स्नेह पूर्ण टिपण्णी का .दिनानुदिन निखार पर हैं शबाब पर हैं आपकी गजलें माशूकाएं .आशिकी .

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 8, 2012 at 2:28 PM

      आदरणीय वीरेंद्र सर सराहना व आशीष हेतु अनेक-2 धन्यवाद

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  • दिगम्बर नासवाDecember 8, 2012 at 3:40 PM

    घिर रही घनघोर काली है घटा फिर
    वर्फबारी कर ग़ज़ब रब ढा गया है...

    बहुत खूब अरुण जी ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... सुन्दर प्रयोग बर्फ़बारी का ..

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 8, 2012 at 3:46 PM

      अनेक-2 धन्यवाद दिगम्बर सर

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  • shaliniDecember 8, 2012 at 4:31 PM

    बेहतरीन ....

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 8, 2012 at 4:37 PM

      शुक्रिया शालिनी जी

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  • Reena MauryaDecember 8, 2012 at 8:56 PM

    आपके ठंडी हवा का कारवाँ बहुत बढियां है..
    बेहतरीन गजल...
    :-)

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 9, 2012 at 12:08 PM

      शुक्रिया रीना जी

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  • Rohitas ghorelaDecember 8, 2012 at 10:29 PM

    एक और गजब की गजल। 4 व 5 न. शेर तो कमाल के हैं।

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 9, 2012 at 12:08 PM

      शुक्रिया मित्र रोहित

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