नज़र में रात पार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नसीबा चूर यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
बजी है धुन गिटार की, लगा है मन को रोग फिर,
जो टूटा प्रेम तार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
सबेरे-शाम-रात-दिन है, याद तेरी साथ बस
यही अगर जो प्यार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
नहीं हुआ है दर्द कम, दवा भी ली दुआ भी की,
ये ज़ख़्म बार-बार हो तो हो रहे, तो हो रहे,
जला है दिल "अरुन" का, कुछ इस तरह से दोस्तों,
जलन ये जोरदार हो तो हो रहे, तो हो रहे.....
ये ग़ज़ल मैंने पंकज सुबीर सर के ब्लॉग के लिए लिखी थी, कुछ त्रुटियाँ थीं परन्तु पंकज सर नें त्रुटियों को संशोधित कर दिया है।
वाह,,बहुत खूब अरुन जी,,
ReplyDeleteअपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नही,
तुमने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी,,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
अनेक-2 धन्यवाद धीरेन्द्र सर
Deleteबहुत बढ़िया लिखी है गजल आपने .आपकी सबसे बड़ी ताकत सहजता है सीखने की लग्न है .तरक्की करोगे .सलाम आपके इस ज़ज्बे को .
ReplyDeleteआदरणीय वीरेंद्र सर अपना आशीष यूँ ही बनाये रखें शुक्रिया
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
तहे दिल से आभार रविकर सर
Deleteलिखने की एक उम्दा कला से सुसज्जित पोस्ट वाकई बहुत ही अच्छी लगी।
ReplyDeleteअंतिम वाला तो बेहद खूब है।
शुक्रिया मित्र रोहित
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