दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (बिटिया देश को जगाकर सो गई) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
ह्रदय के अन्तःस्थल से आभार सर
हटाएंबढ़िया गजल कही है .
प्रत्युत्तर देंहटाएंमुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
आदरणीय वीरेंद्र सर आपका बढ़िया कहना ही हौसला बढ़ा देता है हार्दिक बधाई
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प्रत्युत्तर देंहटाएंसामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है
ये शेर बड़ा ही दिलकश है। बहुत सुन्दर अरुण।
शुक्रिया भाई जान बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंलाजवाब ग़ज़ल... सच है... ज़िन्दगी मौत के क़दमों पे सफ़र करती है...
प्रत्युत्तर देंहटाएंआभार संध्या दीदी
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