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Monday, October 8, 2012

मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा

मरा गुमसुम मेरा दिल दिवाना पड़ा,
मुझे चाहत का भारी खजाना पड़ा,
 

"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"
 
मुझे जल-2 के खुद को बुझाना पड़ा,
मुझे खुद को ही दुश्मन बनाना पड़ा,
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"

मुझे जख्मों से रिश्ता निभाना पड़ा,
मुझे खुद को ही पागल बताना पड़ा,
 
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"

मुझे नींदों से खुद को उठाना पड़ा,
मुझे ख्वाबों को जिन्दा जलाना पड़ा,
 
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"

मुझे अंखियों से सागर बहाना पड़ा,
मुझे खुशियों से दामन छुडाना पड़ा,
 
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"

मुझे धड़कन पे ताला लगाना पड़ा,
मुझे साँसों को मरना सिखाना पड़ा,
 
"तेरे नैनों से नैना मिलाने के बाद"

10 comments:

  1. रविकरOctober 8, 2012 at 1:54 PM

    बढ़िया सीरीज चल रही है-
    अच्छी प्रस्तुतियां-
    इसके लिए भी बधाई ||

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 8, 2012 at 4:06 PM

      रविकर सर आप सभी के आशीर्वाद का नतीजा है. शुक्रिया

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  • Dheerendra singh BhadauriyaOctober 8, 2012 at 2:08 PM

    तेरे नैनों से नयना मिलाने के बाद,,,,बहुत सुंदर पंक्तियाँ,,,अरुण जी,,,,

    RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 8, 2012 at 4:06 PM

      धीरेन्द्र सर बहुत-२ शुक्रिया

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  • shashi purwarOctober 8, 2012 at 2:55 PM

    nice blog ............

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 8, 2012 at 4:07 PM

      Thanks alot Shashi Ji

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    Reply
  • shaliniOctober 8, 2012 at 4:16 PM

    मुझे जख्मों से रिश्ता निभाना पड़ा,
    मुझे खुद को ही पागल बताना पड़ा, बहुत खूब!

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 8, 2012 at 4:18 PM

      शुक्रिया शालिनी जी

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  • संजय भास्करOctober 11, 2012 at 5:55 PM

    जाने क्यूँ कविता दिलको छू लेने वाली है ।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 12, 2012 at 11:28 AM

      शुक्रिया संजय भाई

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