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ब्लॉगिंग से पैसे कमाने के पीछे का असली सच क्या है?
वेबसाइट ब्लॉगिंग आज के समय में अपने पैसे कमाने के लिए एक अच्छा विकल्प है। लेकिन, कुछ लोगों को इसे निर्माण और रूपीडित करने से पहले पैसे कमाने की उम्मीद है। इसलिए, यह जानना जरूरी है कि ब्लॉगिंग से पैसे कमाने के पीछे का असली सच क्या है? असली सच यह है कि यह एक अधूरा स्ट्रिटेजी है। इसे सफलतापूर्वक निर्माण करने की आवश्यकता है और यह अधिक समय लेता है। यह अपने आसान पैसे कमाने के लिए कुछ गुणों को होना चाहिए, जैसे प्राइवेसी, समर्थन, और आवश्यक श्रेणीबद्धता।

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क्যा मैं बांग्ला भाषा में ब्लॉगिंग करके पैसे कमा सकता हूँ?
ब्लॉगिंग एक ऐसा तरीका है जिसे आप पैसे कमाने के लिए उपयोग कर सकते हैं। यदि आप बांग्ला भाषा में ब्लॉगिंग करते हैं तो आप पैसे कमा सकते हैं। आपको एक अच्छा ब्लॉग बनाने के लिए मौजूदा बांग्ला भाषा को समझना होगा। आपको एक वेबसाइट पर अपना ब्लॉग बनाने की आवश्यकता होगी और वेबसाइट पर आपके ब्लॉग को पूरी तरह से रूपांतरित करना होगा। आपको अपने ब्लॉग को प्रचार करने के लिए सोशल मीडिया से जुड़े हुए तरीके का उपयोग करना होगा। आप अपने ब्लॉग से पैसे कमाएंगे, जब आपकी ब्लॉग का प्रचार और पढ़ाई बढ़ जाएगी।

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आप अपनी नई ब्लॉग और वेबसाइट को गूगल न्यूज़ में कैसे सबमिट करते हैं?
आज के दौर में, वेबसाइटों और ब्लॉग्स को गूगल न्यूज़ में संपर्क बनाने का एक अहम तरीका बना हुआ है। आप अपनी नई ब्लॉग या वेबसाइट को गूगल न्यूज़ में सबमिट करने के लिए अपने गूगल सर्च कंसोल पर अपने साइट को सबमिट करने के लिए एक अनुरोध कर सकते हैं। इसके बाद, गूगल न्यूज़ आपकी साइट की पुष्टि करता है और उसे अपने आइंडेक्स में शामिल करता है। आप अपने वेबसाइट को गूगल न्यूज़ में सबमिट करने के लिए कुछ आसान और सरल कदम उठा सकते हैं।

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The Power of Music"" संगीत का शक्ति एक अनन्त प्रकार का है। यह हमें स्थायी और स्वस्थ बनाकर रखता है। संगीत हमारे भावनाओं को प्रभावित करता है और हमारे भावनाओं को लेकर एक अनुभव को गुणगान करता है। यह हमारे मन और शरीर दोनों को हमेशा से स्वस्थ रखता है। इसके अलावा, संगीत हम को संगति, एकता और आत्म संतुलन का अनुभव देता है।

Friday, September 19, 2014
ग़ज़ल : मौत के सँग ब्याह करके
पूर्ण अंतिम चाह करके,
मौत के सँग ब्याह करके,
उम्र भर गुमराह करके,
मुझको मुझसे डाह करके,
मैं चला निर्वाह करके,
यदि ग़ज़ल रुचिकर लगे तो,
मित्र पढ़ना वाह करके,
Monday, September 15, 2014
गीत: नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए
गुण अवगुण के मध्य भिन्नता को समझाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
कड़वाहट अपनों के प्रति ही भरी हुई परिवारों में।
संबंधो के मीठे फल का स्वाद चखाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
अहंकार, लालच, कामुकता का विष नस में फैला है।
सदाचार, व्यवहार, मनुजता को अपनाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
निंदनीय कृत्यों के कारण नहीं स्मरण मान प्रतिष्ठा।
धर्मं, सभ्यता, मानवता, सम्मान बचाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
Thursday, August 28, 2014
शीघ्र प्रकाश्य "सारांश समय का"

पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को रु० ५५०/- (५००/- सहयोग राशि + ५०/- डाक व अन्य खर्च) का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ 5 सितम्बर तक इस ई-मेल पर भेज सकते हैं-
[email protected]
रचनाएँ भेजते समय शीर्षक ‘संकलन हेतु’ अवश्य लिखें. यह सुनिशिचित कर लें कि रचनाओं का आकर इतना हो कि ४ पेज में अधिक से अधिक रचनाएँ सम्मिलित की जा सकें. बहुत लम्बी अतुकांत रचनाएँ न भेजें.
इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लोग्स पर भी किया जाएगा.
सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.
Friday, August 22, 2014
एक तुम्हीं केवल जीवन में
एक तुम्हीं केवल जीवन में,
अंतस में प्रिय विद्यमान तुम,
तुम ही साँसों में धड़कन में,
अधरों पर तुम मुखर रूप से,
अक्षर अक्षर संबोधन में,
सुखद मिलन की स्मृतियों में,
दुखद विरह की इस उलझन में,
मधुर क्षणों में तुम्हीं उपस्थित,
तुम्हीं वेदना की ऐठन में,
प्रखर प्रेम में पूर्ण तरह हो,
तुम हर छोटी सी अनबन में,
मानसपटल की स्थिररता में,
और तुम्हीं तुम व्याकुल मन में,
तुम्हीं कल्पना में भावों में,
तुम्हीं सम्मिलित हो लेखन में....
Monday, July 21, 2014
झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद"
आज धन्य हो गई धरा थी, हर्षित था सारा परिवार,
एक मराठा वीर साहसी, 'मोरोपंत' बने थे तात,
धर्म परायण महा बुद्धिमति, 'भागीरथी' बनी थीं मात.
हे भारत की लक्ष्मी दुर्गा, तुमको बारम्बार प्रणाम
चार वर्ष की उम्र हुई थी, खो बैठी माता का प्यार
शासक बाजीराव मराठा, के पहुँचीं फिर वह दरबार,
पड़ा पुनः फिर नाम छबीली, बही प्रेम की थी रसधार,
शाला में पग धरा नहीं था , शास्त्रों का था पाया ज्ञान
भेद दिया था लक्ष्य असंभव, केवल छूकर तीर कमान,
तन-मन पुलकित और प्रफुल्लित,रोम-रोम में था उत्साह,
शुरू किया अध्याय नया अब, लेकर लक्ष्मीबाई नाम,
जीत लिया दिल राजमहल का, खुश उनसे थी प्रजा तमाम
तबियत बिगड़ी गंगाधर की, रानी पर थी टूटी गाज,
दत्तक बेटा गोद लिया औ, नाम रखा दामोदर राव,
राजा का देहांत हुआ उफ़, जीवन भर का पाया घाव,
सीना धरती का थर्राया, शुरू हुआ भीषण संग्राम,
काँप उठी अंग्रेजी सेना, रानी की सुनकर ललकार,
शीश हजारों काट गई वह, जैसे ही लपकी तलवार,
जगह जगह लाशें बिखरी थीं, लाल लहू से था मैदान,
आज वीरता शौर्य देखकर, धन्य हुआ था हिन्दुस्तान,
समझ गए अंग्रेजी शासक, क्या मुश्किल औ क्या आसान,
आजादी की बलिवेदी पर, वार दिए साँसों के तार
अमर रहे झांसी की रानी, अमर रहे उनका बलिदान,
जब तक होंगे चाँद-सितारे, तब तक होगी उनकी शान...
Wednesday, June 4, 2014
ग़ज़ल : मुग्धकारी भाव आखर अब कहाँ
प्रेम निश्छल वह परस्पर अब कहाँ,
मात गंगा का किया आँचल मलिन,
स्वच्छ निर्मल जल सरोवर अब कहाँ,
रंग त्योहारों का फीका हो चला,
सीख पुरखों की धरोहर अब कहाँ,
सभ्यता सम्मान मर्यादा मनुज,
संस्कारों का वो जेवर अब कहाँ,
सांझ बोझिल दिन ब दिन होती गई,
भोर वह सुखमय मनोहर अब कहाँ...
