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Saturday, December 22, 2012

उठे दर्द जब और उमड़े समंदर

लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
 
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
 
सुबह दोपहर हर घड़ी शाम हरपल,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
 
गिला जिंदगी से रहा हर कदम पे,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
 
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.

16 comments:

  1. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)December 22, 2012 at 3:48 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:35 AM

      अनेक-२ धन्यवाद आदरणीय शास्त्री सर

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  • Reena MauryaDecember 22, 2012 at 7:40 PM

    बेवफा मोहब्बत का यही अफसाना है..
    दर्द ही दर्द है..संवेदनशील रचना...

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:35 AM

      शुक्रिया रीना जी

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  • धीरेन्द्र सिंह भदौरियाDecember 22, 2012 at 9:35 PM

    बहुत उम्दा खूबशूरत गजल,,,,बधाई अरुन जी,,,,

    recent post : समाधान समस्याओं का,

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:36 AM

      धन्यवाद आदरणीय धीरेन्द्र सर

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  • विनोद सैनीDecember 23, 2012 at 10:01 AM

    मर्म को जाहिर करती रचना अति सुन्‍दर

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:36 AM

      आभार सैनी साहब

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  • Aamir DubaiDecember 23, 2012 at 12:34 PM

    दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
    उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.

    मै इस बात से इत्तिफाक रखता हूँ। बिलकुल सोलह आने सच है।

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:36 AM

      शुक्रिया आमिर भाई

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  • Neetu SinghalDecember 23, 2012 at 6:12 PM

    लगी आग जलके, हुवा खाक मंज़र..,
    निगाह सुर्ख मेरी जबाँ लब-ओ-रु तर..,

    लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी..,
    मोहब्बत दिखाए, रोज-ओ-शब् अख्तर..,

    गिला जिन्दगी से,रहा हर कदम पे..,
    गुजरे वक्त मेरा माहो-साल रोकर..,

    लम्हा-दर लम्हा पहरो-दर-पहर..,
    रही याद तेरी, अमानत बन कर..,

    दिलासा दुआ ना दवा काम आई..,
    उठा दर्द दिल में साहिलों-समंदर.....

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:37 AM

      वाह नीतू जी वाह आपने तो रचना में चार चाँद लगा दिया शुक्रिया

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  • shaliniDecember 23, 2012 at 11:01 PM

    कुछ ऐसा भी तमाशा कभी खुदा दिखलाये
    खुद दर्द ही दर्द की दवा बन जाए ... बेहतरीन गज़ल अरुण!

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 24, 2012 at 11:37 AM

      बहुत-२ शुक्रिया शालिनी जी

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  • संजय भास्करDecember 26, 2012 at 1:16 PM

    Ati Sunder......Aur Kya kahoon arun bhai

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    1. अरुन शर्मा "अनंत"December 26, 2012 at 6:01 PM

      शुक्रिया संजय भाई

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