बह्र : रमल मुसम्मन सालिम
वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,
प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,
बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,
झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,
तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....
वाह ... हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन सुंदर गजल ,,,अरुन जी
ReplyDeleteRECENT POST: मधुशाला,
बहुत ही बेहतरीन और लाजबाब ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteप्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
ReplyDeleteबोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,
.. वाह अरुण जी ..क्या बात कही है...बेहतरीन गज़ल!
मत्ला लाजवाब लगा ....
ReplyDeleteआसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया ....
bahut sundar gajal likhi hai aapne badhaai arun ji
ReplyDeleteसुंदर रचना मन को छूती हुई
ReplyDeleteबधाई
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
झूठ का बाज़ार है,सच बोलना बेकार है
ReplyDeleteझूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया...
सुन्दर कथ्य!
मनमोहक गज़ल के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
सादर
bahut hi sundar gajal :) mujhe apke blog ka desing bhi bahut sundar laga
ReplyDeleteबोल कर दो बोल मीठे,जुल्म दिल पे ढा गया
ReplyDeleteइस एक लाइन ने पूरी गज़ल का सार कह दिया............
बहुत सुंदर ग़ज़ल..... प्रस्तुति!!
ReplyDeleteलाजवाब अरुण की लाजवाब गजल ,बधाई अरुण
ReplyDeleteझूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
ReplyDeleteझूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
acchi prastuti! badhaiyan!
ReplyDelete-Abhijit (Reflections)
बहुत सुंदर गजल अरुन जी !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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