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Wednesday, October 10, 2012

सबके कंधे झुक जाते हैं

ये लौ बुझनी है साँसों की,
जल-2 कर तन के चूल्हों में,

सोने-चाँदी का क्या करना,
इक दिन मिलना है धूलों में,

काँटों से डर कर  क्यूँ जीना,
जी भर सोना है फूलों में, 

सबके कंधे झुक जाते हैं,
जब कर बढ़ता है मूलों में, 

हर पल जीता है मरता है,
झूले जो दिल के झूलों में, 
 

22 comments:

  1. रविकरOctober 10, 2012 at 11:45 AM

    कथ्य शिल्प सबकुछ बेजोड़-
    सम्पूर्ण रचना -
    बधाई अरुण ||

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 10, 2012 at 11:48 AM

      आपको प्रणाम, बहुत-2 शुक्रिया आदरणीय रविकर सर

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  • सदाOctober 10, 2012 at 12:15 PM

    वाह ... बेहतरीन

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 10, 2012 at 12:24 PM

      बहुत-२ शुक्रिया सदा जी

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    Reply
  • उपासना सियागOctober 10, 2012 at 12:31 PM


    सबके कंधे झुक जाते हैं,
    जब कर बढ़ता है मूलों में...........
    बहुत बढ़िया जी

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 10, 2012 at 12:34 PM

      बहुत-२ शुक्रिया उपासना जी

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  • Kuldeep SingOctober 10, 2012 at 12:49 PM

    सुंदर भाव... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com पर भी आना।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 10, 2012 at 1:18 PM

      शुक्रिया संदीप जी

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  • रश्मि प्रभा...October 10, 2012 at 1:47 PM

    सबके कंधे झुक जाते हैं,
    जब कर बढ़ता है मूलों में, waah

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 10, 2012 at 1:48 PM

      शुक्रिया रश्मि जी

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    Reply
  • shaliniOctober 10, 2012 at 4:13 PM

    ये लौ बुझनी है साँसों की,
    जल-2 कर तन के चूल्हों में,
    बहुत प्यारी पंक्तियाँ.... सुन्दर भाव!

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 10, 2012 at 4:20 PM

      तहे दिल से शुक्रिया शालिनी जी

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    Reply
  • Reena MauryaOctober 10, 2012 at 7:52 PM

    आपकी रचनाएँ बहुत ही बेहतरीन होती है..
    सुन्दर..
    :-)

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 11, 2012 at 11:00 AM

      आपका धन्यवाद रीना जी

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  • अल्पना वर्माOctober 11, 2012 at 12:19 AM

    bahut badhiya!

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 11, 2012 at 11:00 AM

      शुक्रिया अल्पना जी

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    Reply
  • सतीश सक्सेनाOctober 11, 2012 at 8:37 AM

    बढ़िया लिखते हो अरुण ...
    बधाई !

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 11, 2012 at 11:07 AM

      बहुत-२ शुक्रिया सतीश सर

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  • संजय भास्करOctober 11, 2012 at 5:50 PM

    काँटों से डर कर क्यूँ जीना,
    जी भर सोना है फूलों में,
    .................wah arun bhai dar kar jeene bhi kya jeena hai........behtreen likha hai bhai

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 12, 2012 at 11:27 AM

      तहे दिल से शुक्रिया संजय भाई

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    Reply
  • ***Punam***October 14, 2012 at 11:52 PM

    सबके कंधे झुक जाते हैं,
    जब कर बढ़ता है मूलों में,

    हर पल जीता है मरता है,
    झूले जो दिल के झूलों में,

    bahut khoob....

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 15, 2012 at 10:38 AM

      धन्यवाद पूनम जी

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