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Rajesh KumariNovember 8, 2012 at 6:40 PM
ये क्या हाल बना रखा है अरुण !!!हाहाहा ये तो रही मजाक की बात बहुत अच्छा प्रयास हुआ है उम्दा ग़ज़ल लिखी है दाद कबूल करो
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Virendra Kumar SharmaNovember 8, 2012 at 7:33 PM
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बिखरी आबाद जिंदगी, इस तरह,
अत्र फूलों की लुटी, क्यारी लगी
बहुत सुन्दर है दोस्त बहुत बढ़िया लिख रहे हो .
बिखरी आबाद जिंदगी, इस तरह,
अत्र फूलों की लुटी, क्यारी लगी
इश्क पर जोर नहीं ,है ये वो आतिश ग़ालिब ,
के लगाए न लगे और बुझाए न बने .Reply
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राज चौहानNovember 9, 2012 at 3:12 PM
आपकी रचना अच्छी लगी
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बिखरी आबाद जिन्दगी,इस तरह
ReplyDeleteअत्र" फूलों की लुटी, क्यारी लगी।
वाह .. बेहद खुबसूरत ... :))
एक एक शेर बेहद सँवरा हुआ
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
बहुत-2 शुक्रिया रोहित भाई
Deleteदिन दूभर और रात भारी लगी है ।
ReplyDelete(अरुण शर्मा )
आज कल मैं सीखने की कोशिश में लगा हूँ गजल की आकर्षक विधा -
2 2 2 2 1 2 1 22 1 22
महबूबा की अजब तयारी लगी है ।
जब से देखा उसे हमारी लगी है ।।
करने आता तभी मुलाक़ात साला
उसकी बोली मुझे कटारी लगी है ।।
अरुण जी जरा बताना तो-
बहर ठीक है या कहीं सुधार की जरुरत है-
मुझे संकोच नहीं -
तुम भी मत करो -
बिंदास कहो -
सर आपका हर शेर लाजवाब है मुझसे कहीं बेहतर लिखा है क्या बात है.
Deleteआपका अंदाज निराला है,
कर रहा हर शेर उजाला है।
अरुण भाई -
Deleteसचमुच सीखने की कोशिश में लगा हूँ-
आपने इसे सही कहा-
आभार ||
सर सीख तो मैं रहा हूँ सच कहूँ तो आपसे दोहे की विद्या लेना चाहता हूँ जो मज़ा आपके दोहों में है वो और कहीं नहीं।
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteआज लिंक लिक्खाड़ पर
450 वीं
पोस्ट
सर लिंक लिक्खाड़ पर स्थान देने हेतु आभार। 450 वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई.
Deleteएक अदना सा करिश्मा है ये उसके इश्क का,
ReplyDeleteमर गया हूँ, और मरने का गुमा होता नही,,,,,,
RECENT POST:..........सागर
वाह सर क्या बात है अति उत्तम लाजवाब
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