छल कपट लालच बुराई को निकाला दे,
जग हुआ अंधा अँधेरे से, उजाला दे,
                                            
झूठ हिंसा पाप से सबको बचा या रब,
शान्ति सुख संतोष देती पाठशाला दे,
                                            
शुद्धता जिसमें घुली हो जिसमें सच्चाई,
प्रेम से गूँथी हुई हाथों में माला दे,
                                            
स्वर्ण आभूषण की मुझको है नहीं चाहत,
भूख मिट जाए कि उतना ही निवाला दे,
                                            
जिंदगी जैसी भी चाहे दे मुझे मौला,
आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे..
                                          
                                        जग हुआ अंधा अँधेरे से, उजाला दे,
झूठ हिंसा पाप से सबको बचा या रब,
शान्ति सुख संतोष देती पाठशाला दे,
शुद्धता जिसमें घुली हो जिसमें सच्चाई,
प्रेम से गूँथी हुई हाथों में माला दे,
स्वर्ण आभूषण की मुझको है नहीं चाहत,
भूख मिट जाए कि उतना ही निवाला दे,
जिंदगी जैसी भी चाहे दे मुझे मौला,
आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे..
