


Wednesday, January 30, 2013
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते
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अरुन शर्मा अनन्त at
Wednesday, January 30, 2013
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Sunday, January 27, 2013
कभी खाने के लाले हैं
ग़ज़ल
वज्न : 1222 , 1222
कभी पैसों की किल्लत तो,
कभी खाने के लाले हैं,
हमीं तो इक नहीं जख्मी,
हजारों दर्द वाले हैं,
कई हैरान रातों से,
किसी के दिन भी काले हैं,
सभी अच्छे यहाँ देखो,
मुसीबत के हवाले हैं,
गुनाहों के सभी मालिक,
कतल का शौक पाले हैं,
धुले हैं दूध के लेकिन,
नियत में खोट जाले हैं,
शराफत में शरीफों की,
जुबां पे आज ताले हैं,
बुरा ना मानना यारों,
जरा कातिब दिवाले हैं.
कातिब - लेखक, लिपिक
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अरुन शर्मा अनन्त at
Sunday, January 27, 2013
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Friday, January 25, 2013
नतीजा न निकला मेरे प्यार का
ग़ज़ल
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12
तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,
चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,
तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,
कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,
नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12
तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,
चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,
तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,
कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,
नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....
निहाँ - गुप्त चोरी-छुपे
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Friday, January 25, 2013
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Wednesday, January 23, 2013
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम
ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
बड़ों के कहे का नहीं मान है,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
नियत डगमगाती सभी नारि पे,
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,
गुनाहों कि आई हवा जोर से,
शरम लाज का अब ज़माना खतम,
शरम लाज का अब ज़माना खतम,
मुलाकात का तो समय ही नहीं,
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,
जुबां पे नये गीत सजने लगे,
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....
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Wednesday, January 23, 2013
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Sunday, January 20, 2013
क्या खुदा भगवान आदम???
खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
चोर मन ले फिर रहा है,
कोयले की खान आदम,
कोयले की खान आदम,
नारि पे ताकत दिखाए,
जंतु से हैवान आदम,
जंतु से हैवान आदम,
मौत आनी है समय पे,
जान कर अंजान आदम,
जान कर अंजान आदम,
सोंचता है सोंच नीची,
बो रहा अपमान आदम,
बो रहा अपमान आदम,
मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???
क्या खुदा भगवान आदम???
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Sunday, January 20, 2013
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Friday, January 18, 2013
खरामा - खरामा
खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,
भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,
अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,
शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,
जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,
जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.
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Friday, January 18, 2013
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प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है
(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,
कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,
मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22
चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,
फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,
धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,
कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,
मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..
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Friday, January 18, 2013
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Saturday, January 12, 2013
हद है
मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
कौन अपना है पराया है हमे क्या मालुम,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,
भूल मुझको जो गई यादों के हर लम्हों से,
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.
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Saturday, January 12, 2013
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Wednesday, January 9, 2013
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो
इंसान की फितरत खुदा हर हाल बदलो,
थोड़ी समय की गति जरा सी चाल बदलो,
खोटी नज़र के लोग अब बढ़ने लगे हैं,
आदत निगाहों की गलत इस साल बदलो,
जीना नहीं आसान इस दौरे जहाँ में,
अपमान ये घृणा बुरा हर ख्याल बदलो,
नारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
कमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,
लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,
नारद उठाओ प्रभु को किस्सा सुनाओ,
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो.
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Wednesday, January 09, 2013
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Monday, January 7, 2013
संकल्प
संकल्प है अंधेर की नगरी मिटानी है,
संकल्प है अपमान की गर्दन उड़ानी है,
दुश्मन हो बेशक मेरी लेखनी समाज की,
संकल्प है इन्सान की सीमा बतानी है,
अंग्रेज जिस तरह से हिंदी को खा रहे,
संकल्प है अंग्रेजों को हिंदी सिखानी है,
बहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है,
रीति -रिवाज भूले फैशन के दौर में,
संकल्प है आदर की चादर बिछानी है,
भटकी है युवा पीढ़ी दौलत की चाह में,
संकल्प है शिक्षा की सही लौ जलानी है....
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Monday, January 07, 2013
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Thursday, January 3, 2013
दानव का किरदार ले गए
जीने के आसार ले गए,
जीवन का आधार ले गए,
भूखों की पतवार ले गए,
लूटपाट घरबार ले गए,
छीनछान व्यापार ले गए,
दौलत देश के पार ले गए,
खुशियों के बाज़ार ले गए,
औषधि और उपचार ले गए,
सारा आदर सत्कार ले गए,
प्रेम भाव त्यौहार ले गए,
पेट्रोल बढ़ाया कार ले गए,
गाड़ी मेरी मार ले गए,
खुद्दारी खुद्दार ले गए,
दानव का किरदार ले गए.
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Thursday, January 03, 2013
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Monday, December 31, 2012
जब बुढ़ापे का - खुदा दे के सहारा छीने
ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक ३० में शामिल मेरी दूसरी ग़ज़ल
मौत को दूर, मुसीबत बेअसर करती है,
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,
जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,
देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,
फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,
जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,
जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...
गर दुआ प्यार भरी, साथ सफ़र करती है,
जान लेवा ये तेरी, शोख़ अदा है कातिल,
वार पे वार, कई बार नज़र करती है,
देख के तुम न डरो, तेज हवा का झोंका,
राज की बात हवा, दिल को खबर करती है,
फासले बीच भले, लाख रहे हों हरदम,
फैसला प्यार का, तकदीर मगर करती है,
जख्म से दर्द मिले, पीर मिले चाहत से,
प्यार की मार सदा, घाव जबर करती है,
जब बुढ़ापे का, खुदा दे के सहारा छीने,
रात अंगारों के, बिस्तर पे बसर करती है...
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अरुन शर्मा अनन्त at
Monday, December 31, 2012
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Saturday, December 29, 2012
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है
"ओ बी ओ तरही मुशायरा" अंक ३० में शामिल मेरी पहली ग़ज़ल.
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
दिल्लगी यार की बेकार हुनर करती है,
मार के चोट वो गम़ख्व़ार फ़िकर करती है,
इन्तहां याद की जब पार करे हद यारों,
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है,
आरजू है की तुझे भूल भुला मैं जाऊं,
चाह हर बार तेरी पास मगर करती है,
देखने की तुझे न चाह न कोई हसरत,
माफ़ करना जो ये गुस्ताख नज़र करती है,
मुश्किलें दूर कहीं छोड़ मुझे ना जाएँ,
जिंदगी मौत के कदमो पे सफ़र करती है,
सामने प्यार बहुत और बुराई पीछे,
इक यही बात तेरी दिल पे असर करती है.
गम़ख्व़ार - दिलासा देते हुए
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अरुन शर्मा अनन्त at
Saturday, December 29, 2012
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Friday, December 28, 2012
कुण्डलिया प्रथम प्रयास
आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम सर के द्वारा संशोधित कुण्डलिया प्रथम प्रयास
सोवत जागत हर पिता, करता रहता जाप,
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
रखना बिटिया को सुखी, हे नारायण आप
हे नारायण आप , कृपा अपनी बरसाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
मिले मान सम्मान,मिले ससुराल सुहाना
बीते जीवन नित्य,प्रेम के पुष्प पिरोवत
अधरों पर मुस्कान,सदा हो जागत सोवत
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अरुन शर्मा अनन्त at
Friday, December 28, 2012
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Thursday, December 27, 2012
तुम न मुझको भूल जाना
तुम न मुझको भूल जाना,
याद करना याद आना,
याद करना याद आना,
जिंदगी तेरे हवाले,
छोड़ दो या मार जाना,
छोड़ दो या मार जाना,
प्यार तेरा बंदगी है,
आज है तुझको बताना,
आज है तुझको बताना,
चाहते हैं लोग सारे,
दाग से दामन बचाना,
दाग से दामन बचाना,
ठीक ये बिलकुल नहीं है,
हार कर आंसू बहाना .....
हार कर आंसू बहाना .....
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अरुन शर्मा अनन्त at
Thursday, December 27, 2012
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Monday, December 24, 2012
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता
यही देश था वीरों की गाता अद्भुत गाथा,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रहा प्रकृति की हरियाली,
आज इसी धरती पे प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
घटती हैं हर रोज हजारों शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के अपना काम चलाएं,
अपना ही व्यख्यान सुनाकर फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
होंठों पे सौ किलो चासनी दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं फैली अजब बिमारी,
ऐसी हालत देख खड़ा बुत भी है शर्माता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
कभी यहाँ प्रेम -सभ्यता की भी बात निराली,
आज यहाँ प्रणाम नमस्ते से आगे है गाली,
इक मसीहा नहीं बचा है कौन करे रखवाली,
शहरों में तब्दील हो रहा प्रकृति की हरियाली,
आज इसी धरती पे प्राणी को प्राणी है खाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
घटती हैं हर रोज हजारों शर्मसार घटनाएं,
काम दरिंदो से बद्तर, खुद को पुरुष बताएं,
पान सुपारी ध्वजा नारियल जो हैं रोज चढ़ाएं,
जनता का धन लूटपाट के अपना काम चलाएं,
अपना ही व्यख्यान सुनाकर फूले नहीं समाता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
होंठों पे सौ किलो चासनी दिल में पर मक्कारी,
बुरी नज़र की दृष्टि कोण से देखी जाएँ नारी,
भ्रष्टाचार ले आया है भारत में लाचारी,
अब जनता की खैर नहीं फैली अजब बिमारी,
ऐसी हालत देख खड़ा बुत भी है शर्माता,
इसी देश की धरती पे थे जन्मे स्वयं विधाता,
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Monday, December 24, 2012
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Saturday, December 22, 2012
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर
लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
सुबह दोपहर हर घड़ी शाम हरपल,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
गिला जिंदगी से रहा हर कदम पे,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
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Saturday, December 22, 2012
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Thursday, December 20, 2012
ओ. बी. ओ. "चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता" अंक-21 के लिए लिखी रचना
भीग-भीग बरसात में, सड़ता रहा अनाज,
गूंगा बना समाज है, अंधों का है राज,
देखा हर इंसान का , अलग-अलग अंदाज,
धनी रोटियां फेंकता, दींन है मोहताज,
दौलत की लालच हुई, बेंचा सर का ताज,
अब सुनता कोई नहीं, भूखों की आवाज,
कहते अनाज देवता, फिर भी यह अपमान,
सच बोलूं भगवान मैं, बदल गया इंसान,
काम न आया जीव के, सरकारी यह भोज,
पाते भूखे पेट जो, जीते वे कुछ रोज...
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Thursday, December 20, 2012
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Sunday, December 16, 2012
लड़खड़ाते पांव मेरे - जबकि मैं पीता नहीं
याद में तेरी जिऊँ, मैं आज में जीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
नाज़ नखरे रख रखें हैं, आज भी संभाल के,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
तोलना है तोल लो तुम, नापना है नाप लो,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
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Sunday, December 16, 2012
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Saturday, December 15, 2012
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द ही हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार मुझको छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,
देखकर मुझको निगाहें फेर लेना,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
दौर ये मुश्किल रहा है जिंदगी भर,
बेवजह मुझको मिली बदनामियाँ हैं,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
जबकि वो कातिल रहा है जिंदगी भर,
नींद से मैं जाग जाता हूँ अचानक,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
खौफ यूँ शामिल रहा है जिंदगी भर,
चाह है मैं चाहता उसको रहूँ बस,
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर.
इक यही आदिल रहा है जिंदगी भर.
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Saturday, December 15, 2012
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