ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक-३१ हेतु लिखी ग़ज़ल.
(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२ )
बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,
समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,
गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,
किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,
भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,
गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,
दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते.
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते...
ReplyDeleteबहुत बढ़ियाँ गजल..
:-)
धन्यवाद रीना जी
Deleteबहुत ही सुन्दर दर्द भरी ग़ज़ल,दुआ हम सब की है,आभार।
ReplyDeleteशुक्रिया राजेंद्र जी
Deleteबढ़िया गजल |
ReplyDeleteबधाई अरुण जी ||
आभार आदरणीय रविकर कर
Deleteदवा से दुआ से नहीं तो नसे से,
ReplyDeleteबहल जायेगा दिल बहलते-बहलते..
वाह !!! बहुत खूबशूरत गजल,,,बधाई अरुन जी,,,
recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
हार्दिक आभार आदरणीय धीरेन्द्र सर
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