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आप सब को होली पर्व पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं





बृहस्पतिवार, 28 मार्च 2013

दो गज़लें

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल मेरी दो गज़लें.

................... 1 ...................

जीजा बुरा न मानो होली बता के मारा,
सूरत बिगाड़ डाली कीचड़ उठा के मारा,

खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
सर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,

काजल कभी तो शैम्पू बिंदी कभी लिपिस्टिक,
बीबी ने बैंक खाता खाली करा के मारा,

अंदाज था निराला पहना था चस्मा काला,
इक आँख से थी कानी मुझको पटा के मारा,

गावों की छोरियों को मैंने बहुत पटाया,
शहरों की लड़कियों ने बुद्धू बना के मारा ....

................... २ ...................

बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,

जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,

उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
मनमोहनी ने नस्तर मुझको रिझा के मारा,

आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा

तकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....

सोमवार, 25 मार्च 2013

बुरा न मानो होली है

............. बुरा न मानो होली है ............

रंगों की बदरी छाई है, होली की बारिश आई है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

शास्त्री सर की कविता रंगू, रविकर सर की कुण्डलियाँ,
निगम सर के गीत भिगाऊं, धीरेन्द्र सर जी की गलियाँ,
जरा हँसी मजाक ठिठोली है, यह गुरु शिष्य की होली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

प्रिय संदीप मनोज सखा की ग़ज़लों को भंग पिलाऊं मैं
शालिनी जी की अनुभूति को लाल गुलाल लगाऊं मैं,
भरी रंगों से ही झोली है, यह मित्र सखा की होली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,

तरह तरह के रंग रंगीले, कुछ नीले हैं कुछ पीले हैं,
एक जैसी सबकी सूरत है, सब भीगे हैं सब गीले हैं,
मस्त पवन भी डोली है, झूमी गाती हर टोली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है,,

हर चेहरा रंगों वाला है, चाहे गोरा है या काला है,
यह प्रेम जुदा है गहरा है, खुशियों का घर-२ पहरा है,
फागुन की मीठी बोली है, मनमौजी भंग की गोली है,
मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है ....

शनिवार, 23 मार्च 2013

मत्तगयन्द' सवैया

मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ

1.

नाचत भंग पिए जन हैं, भर रंग फिरे हर सूरत भोली,
रूप स्वरुप खिले गुल से, मन मोर निहार रहा हर टोली,
लाल गुलाल कपोल सजे, जब मेल मिलाप करें हमजोली,
ढोल बजे हुडदंग मचे, घर स्वच्छ करे यह पावन होली .....



२.

रंग अबीर लगाय रहे भर भंग पियें जन जीभर प्याला,
मित्र सखा मिल घूम रहे हर रंग खिला हर रूप निराला,
प्रेम लुटाय रहे सबहीं मिल खाय रहे सब प्रेम निवाला,
मेल मिलाप लुभाय रहा मन और बढ़ाय रहा उजियाला..

बृहस्पतिवार, 21 मार्च 2013

संसार आफतों का भण्डार हो चला है

काटों भरी डगर है जीवन का पथ खुदा है,
गंभीर ये समस्या हल आज लापता है,

अंधा समाज बैरी इंसान खुद खुदी का,
अनपढ़ से भी है पिछड़ा, वो जो पढ़ा लिखा है,

धोखाधड़ी में अक्सर मसरूफ लोग देखे,
ईमान डगमगाया इन्‍सां लुटा पिटा है,

तकदीर के भरोसे लाखों गरीब बैठे,
हिम्मत सदैव हारें इनकी यही खता है,

अपमान नारियों का करता रहा अधर्मी,
संसार आफतों का भण्डार हो चला है...

रविवार, 17 मार्च 2013

यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते

ग़ज़ल
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
बह्र : हजज मुसम्मन सालिम

कभी सच्ची मुहब्बत को दिवाने दिल नहीं पाते,
यहाँ पत्थर बहुत रोया वहां आंसू नहीं आते,

रजा मेरी जुदा ठहरी रजा उसकी जुदा ठहरी,
मुझे कलियाँ नहीं जँचती उसे कांटे नहीं भाते,

डरा सहमा रहेगा उम्रभर ये दिल मेरा यूँ ही,
तेरी फितरत से वाकिफ जबतलक हम हो नहीं जाते,

चली है याद फिर मेरी उड़ाने नींद रातों की,
जगे हैं नैन जबसे ख्वाब के बादल नहीं छाते,


मुकम्मल इश्क की कोई कहानी कब हुई यारों,
नहीं लैला नहीं मजनू नहीं रिश्ते नहीं नाते..

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

भयभीत बेटियों का हर तात जागता है

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
 
दिन रात मुश्किलों से जीवन का वास्ता है,
साँसों के साथ चलता मरने का सिलसिला है,

महका गुलों से उपवन मौसम हुआ सुहाना,
नींदों के बिना भौंरा अब रात काटता है,

फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
मेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,

मुरझाये पेड़ पौधे सूखा हरा बगीचा
मौसम ने कर लिया जो पतझड़ का नास्ता है,

फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
भयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...

बुधवार, 13 मार्च 2013

चाहत अथाह है

ना देखा आपने,
चाहत अथाह है,

मुखड़ा आपका,
रखती निगाह है,

मैं पूजूं आपको,
दिल की सलाह है,

मेरी तो आपमें,
मंजिल है राह है,

रजा में आपकी,
सब कुछ पनाह है,

सिर्फ ये दिल नहीं,
जान भी तबाह है.

सोमवार, 11 मार्च 2013

मौत सबकी समय के निशाने में है

गैरियत आज जालिम ज़माने में है,
मौत सबकी समय के निशाने में है,

हर दरिंदा यहाँ अब यही सोचता,
सुख मज़ा नारियों को सताने में है,

सुर्ख़ियों में वो छाये गलत काम कर,
नाम अच्छों का गुम अब घराने में है,

कब ठहरती वफ़ा है अधिक देर तक,
बेवफाई का मौसम फ़साने में है,

बेंच कर वो शरम आगे जाता रहा,
मेरी मंजिल गुमी हिचकिचाने में है....

रविवार, 10 मार्च 2013

'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
दिन रात मुश्किलों का अब साथ काफिला है
'ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है '

आराम ना मयस्सर कुछ वक़्त का किसी को,
कोई तमाम लम्हें फुर्सत से फांकता है,

इंसान ये वही है जो मैंने था बनाया,
ताज्जुब भरी नज़र से भगवान ताकता है,

रस्मो रिवाज बदले बदली नज़र की फितरत,
हर ओर बह रहा अब आफत है जलजला है,

मशरूफ है जमाना जीने की चाह में पर,
काँधे पे रखके अपनी ही लाश भागता है. ..
(आज मेरा ब्लॉग एक साल का हो गया है )

बुधवार, 6 मार्च 2013

कुण्डलिया

भारत की सरकार में , शकुनी जैसे लोग,
आम आदमी के लिए , नित्य परोसें रोग

नित्य परोसें रोग , नहीं मिलता छुटकारा,
ढूँढे  कौन  उपाय  ,  हुआ  मानव  बेचारा 

महिलायें हर रोज , अपना मान हैं हारत,
बदले रीति रिवाज, बदलता जाए भारत...

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

चंद - पंक्तियाँ

1. 
मेरी कीमत लगाता बजारों में था.
वो जो मेरे लिए इक हजारों में था.
कब्र की मुझको दो गज जमीं ना मिली,
आशियाँ उसका देखो सितारों में था.
 2. 
लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए,

3. 
 गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
उनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,
4.

गुलशन में फूल मेरे खिलते हैं आपसे,
ख्वाबों में रोज घंटों मिलते हैं आपसे,
खिल के है मुस्कुराई थी मायूस जिंदगी,
सदियों के जख्म गहरे सिलते हैं आपसे..

बृहस्पतिवार, 28 फरवरी 2013

राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...

राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...

http://jaagosonewalo.blogspot.in/2013/02/blog-post_27.html

At least 9 blogs are now carrying the Hindi version of the Netaji mystery inquiry petition. Can anyone translate the same petition in Bangla, Tamil, Gujarati or and any other language please?

जबकि आज हर भारतीय ने नेताजी के आसपास के विवाद के बारे में सुना है, बहुत कम लोग जानते हैं कि तीन सबसे मौजूदा सिद्धांतों के संभावित हल वास्तव में उत्तर प्रदेश में केंद्रित है| संक्षेप में, नेताजी के साथ जो भी हुआ उसे समझाने के लिए हमारे सामने आज केवल तीन विकल्प हैं: या तो ताइवान में उनकी मृत्यु हो गई, या रूस या फिर फैजाबाद में |

1985 में जब एक रहस्यमय, अनदेखे संत “भगवनजी” के निधन की सूचना मिली, तब उनकी पहचान के बारे में विवाद फैजाबाद में उभर आया था, और जल्द ही पूरे देश भर की सुर्खियों में प्रमुख्यता से बन गया| यह कहा गया कि यह संत वास्तव में सुभाष चंद्र बोस थे। बाद में, जब स्थानीय पत्रकारिता ने जांच कर इस कोण को सही ठहराया, तब नेताजी की भतीजी ललिता बोस ने एक उचित जांच के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

http://tamasha-e-zindagi.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://www.hansteraho.com/2013/02/blog-post_27.html
http://jindagikeerahen.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://archanachaoji.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://kalptaru.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://padmsingh.blogspot.com/2013/02/blog-post_27.html
http://shroudedemotions.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
http://rbh-devkjha.blogspot.com/2013/02/blog-post.html
https://arunsblog.in/2013/02/blog-post_28.html


जागो सोने वालों...: राष्ट्र हित मे आप भी जुड़िये इस मुहिम से ...
jaagosonewalo.blogspot.com
कुछ खास नहीं ... बस कुछ सोते हुए लोगो को जगाने की एक कोशिश है |

रविवार, 24 फरवरी 2013

ग़ज़ल : जिद में

दिलों की कहानी बनाने की जिद में,
लुटा दिल मेरा प्यार पाने की जिद में,

बिना जिसके जीना मुनासिब नहीं था,
उसे खो दिया आजमाने की जिद में,

मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,

घुटन बेबसी लौट घर फिर से आई,
रहा कुछ नहीं सब बचाने की जिद में,  

तमाशा बना जिंदगी का हमेशा, 
शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....

बृहस्पतिवार, 21 फरवरी 2013

ग़ज़ल : समन्दर

सभी को लगे खूब प्यारा समन्दर,
सुहाना ये नमकीन खारा समन्दर,

नसीबा के चलते गई डूब कश्ती,
मगर दोष पाये बेचारा समन्दर,

दिनों रात लहरों से करता लड़ाई,
थका ना रुका ना ही हारा समन्दर,

कई राज गहरे छुपाकर रखे है,
नहीं खोलता है पिटारा समन्दर,

सुबह शाम चाहे कड़ी दोपहर हो,
हजारों का इक बस सहारा समन्दर.


रविवार, 17 फरवरी 2013

बसंत - गीत

जब ऋतुराज विहँस आता है,तन-मन निखर-निखर जाता है
पुलकित  होकर  मन  गाता  है ,  प्यारा यह  मौसम भाता है 

अमराई  बौराई  फिर से , हरियाली  लहराई फिर से,
कोयल फिर उपवन में बोले, मीठी-मीठी मिश्री घोले,
हृदय लुटाता प्रणय जताता, भ्रमर कली पर मंडराता है.     
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम  भाता है.

बाली गेहूँ की लहराई, झूमी मदमाती पुरवाई,
पागल है भौंरा फूलों में, झूले मेरा मन झूलों में,
मस्ती में सरसों का सुन्दर,  पीला आँचल लहराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है. 


पेड़ों में नवपल्लव साजे, ढोल मँजीरा घर-घर बाजे,
महकी फूलों की फुलवारी, सजी धरा दुल्हन सी प्यारी,
धीमी-मध्यम तेजी गति से, बादल नभ में मँडराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम  भाता है.

बुधवार, 13 फरवरी 2013

लुटा है चमन मुस्कुराने की जिद में

महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
 
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
 
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
 
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
 
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,

बृहस्पतिवार, 7 फरवरी 2013

समंदर बचाना

नया इक फ़साना,
बुने दिल दिवाना,

दुखों से लबालब,
भरा है जमाना,

न कर दोस्ती दिल,
न दुश्मन बनाना,

कहाँ हो सुनो भी,
जरा पास आना,

कहो ठोकरों से,
कि चलना सिखाना,

बही हैं निगाहें,
समंदर बचाना,

नहीं प्रेम रस तो,
जहर ही पिलाना...

सोमवार, 4 फरवरी 2013

दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है

.................ग़ज़ल.................

(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)


दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,

जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,

इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,

कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,

खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...

शुक्रवार, 1 फरवरी 2013

बुना कैसे जाये फ़साना न आया

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२) 

बुना कैसे जाये फ़साना न आया,  
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,

चला कारवां चार कंधों पे सजकर,  
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,

दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,  
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,

जहर से भरा तीर नैनों से मारा,  
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,

किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,

बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,  
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,

मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,  
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,

समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.

बुधवार, 30 जनवरी 2013

बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते

ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक-३१ हेतु लिखी ग़ज़ल.

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२ )

बिना तेरे दिन हैं जुदाई के खलते,
कटे रात तन्हा टहलते - टहलते,

समय ने चली चाल ऐसी की प्राणी,
बदलता गया है बदलते - बदलते,

गिरे जो नज़र से फिसल के जरा भी,
उमर जाए फिर तो निकलते-निकलते,

किया शक हमेशा मेरी दिल्लगी पे,
यकीं जब हुआ रह गए हाँथ मलते,

भरम ही सही यार तेरी वफ़ा का,
जिए जा रहा हूँ ये आदत के चलते,

गुनाहों का मालिक खुदा बन गया है,
भलों को नहीं हैं भले काम फलते,

दवा से दुआ से नहीं तो नशे से,
बहल जायेगा दिल बहलते-बहलते.

रविवार, 27 जनवरी 2013

कभी खाने के लाले हैं

ग़ज़ल
वज्न : 1222 , 1222

कभी पैसों की किल्लत तो,
कभी खाने के लाले हैं,

हमीं तो इक नहीं जख्मी,
हजारों दर्द वाले हैं,

कई हैरान रातों से,
किसी के दिन भी काले हैं,

सभी अच्छे यहाँ देखो,
मुसीबत के हवाले हैं,

गुनाहों के सभी मालिक,
कतल का शौक पाले हैं,

धुले हैं दूध के लेकिन,
नियत में खोट जाले हैं,

शराफत में शरीफों की,
जुबां पे आज ताले हैं,

बुरा ना मानना यारों,
जरा कातिब दिवाले हैं.
 
कातिब - लेखक, लिपिक
 

शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

नतीजा न निकला मेरे प्यार का

ग़ज़ल
वज्न : 122 , 122 , 122 , 12

तुझे हम नयन में बसा ले चले,
मुहब्बत का सारा मज़ा ले चले,

चली छूरियां हैं जिगर पे निहाँ,
छिपाए जखम दिल ठगा ले चले,

तबीयत जो मचली तेरी याद में,
उमर भर अलग सा नशा ले चले,

कटे रात दिन हैं तेरे जिक्र में,
अजब सी ये आदत लगा ले चले,

नतीजा न निकला मेरे प्यार का,
ये कैसा नसीबा लिखा ले चले.....


निहाँ - गुप्त चोरी-छुपे

बुधवार, 23 जनवरी 2013

अदब से सिरों का झुकाना ख़तम

ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,

बड़ों के कहे का नहीं मान है,  
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,

कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,  
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,

नियत डगमगाती सभी नारि पे,  
दिलों का सही दिल लगाना ख़तम,

गुनाहों कि आई हवा जोर से,  
शरम लाज का अब ज़माना खतम,

मुलाकात का तो समय ही नहीं,  
मनाना ख़तम रूठ जाना ख़तम,

जुबां पे नये गीत सजने लगे,
पुराना सुना हर तराना ख़तम.....

रविवार, 20 जनवरी 2013

क्या खुदा भगवान आदम???

खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,

चोर मन ले फिर रहा है,  
कोयले की खान आदम,

नारि पे ताकत दिखाए,  
जंतु से हैवान आदम,

मौत आनी है समय पे,  
जान कर अंजान आदम,

सोंचता है सोंच नीची,  
बो रहा अपमान आदम,

मौज में सारे कुकर्मी,
क्या खुदा भगवान आदम???

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

खरामा - खरामा

खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,

भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,

अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,

शरम का ख़तम दौर हो सा गया,
खरामा - खरामा मची गन्दगी,

जमाना भलाई का गुम हो गया,
खरामा - खरामा बुरा आदमी,

जुबां पे रखी स्वाद की गोलियां,
खरामा - खरामा जहर सी लगी.

प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है

(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन)
वज्न : 2122, 1122, 1122, 22


चोर की भांति मेरी ओर नज़र करती है,
प्यार से बोल जरा प्यार अगर करती है,


फूल से गाल तेरे बाल तेरे रेशम से,
चाल हिरनी सी मेरी जान दुभर करती है,


धूप सा रूप तेरा और कली सी आदत,
बात खुशबू को लिए साथ सफ़र करती है,


कौन मदहोश न हो देख तेरी रंगत को,
शर्म की डाल झुकी घाव जबर करती है,


मार डाले न मुझे चाह तुझे पाने की,
मौत के पास मुझे रोज उमर करती है..

शनिवार, 12 जनवरी 2013

हद है

मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,  
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,

हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,

स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,  
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,

कौन अपना है पराया है हमे क्या मालुम,
प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है,

भूल मुझको जो गई यादों के हर लम्हों से,
जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है.

बुधवार, 9 जनवरी 2013

कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो

इंसान की फितरत खुदा हर हाल बदलो,
थोड़ी समय की गति जरा सी चाल बदलो,

खोटी नज़र के लोग अब बढ़ने लगे हैं,
आदत निगाहों की गलत इस साल बदलो,

जीना नहीं आसान इस दौरे जहाँ में,
अपमान ये घृणा बुरा हर ख्याल बदलो,

नारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
कमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,

लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,

नारद उठाओ प्रभु को किस्सा सुनाओ,
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो.

सोमवार, 7 जनवरी 2013

संकल्प

संकल्प है अंधेर की नगरी मिटानी है,
संकल्प है अपमान की गर्दन उड़ानी है,

दुश्मन हो बेशक मेरी लेखनी समाज की,
संकल्प है इन्सान की सीमा बतानी है,

अंग्रेज जिस तरह से हिंदी को खा रहे,
संकल्प है अंग्रेजों को हिंदी सिखानी है,

बहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है,

रीति -रिवाज भूले फैशन के दौर में,
संकल्प है आदर की चादर बिछानी है,

भटकी है युवा पीढ़ी दौलत की चाह में,
संकल्प है शिक्षा की सही लौ जलानी है....
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