'बहरे मुजारे मुसमन अख़रब'
(221-2122-221-2122)
दिन रात मुश्किलों से जीवन का वास्ता है,
साँसों के साथ चलता मरने का सिलसिला है,
महका गुलों से उपवन मौसम हुआ सुहाना,
नींदों के बिना भौंरा अब रात काटता है,
फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
मेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,
मुरझाये पेड़ पौधे सूखा हरा बगीचा
मौसम ने कर लिया जो पतझड़ का नास्ता है,
फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
भयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...
बहुत बढ़िया -
ReplyDeleteसटीक हैं प्रियवर ||
फैले समाज में हैं जब से कई दरिन्दे,
Deleteभयभीत बेटियों का हर तात जागता है ...
जबरदस्ती की पंक्तियाँ ठुसने की कोशिश-
आये नए जमाने में हैं गजब परिंदे -
पंखों शरीर पर रेजर तेज बांधता है -
ताके लिए नज़ारे पीछा किया तो समझो-
पाओ नहीं जमानत जेल कौंधता है-
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सामयिक रचना अरुण ,बधाई
ReplyDeletebahut hi sundar rachna arun
ReplyDeleteसुन्दर !!
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की है आपने तो अरुण जी!
बहुत ही सामयिक और सुन्दर ग़ज़ल,आभार.
ReplyDelete........प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
फूलों को मेरे सबने रौंदा बुरी तरह से,
ReplyDeleteमेरे चमन से उसके गुलशन का रास्ता है,...
बहुत खूब ... मस्त गज़ल के शेर हैं सभी कमाल के ...
बेहतरीन
ReplyDeleteadvitiya...
ReplyDeleteKiya apne jo vaar hai
ReplyDeleteDil hua bekarar hai
Apki is Rachana se
Hua dil Taar taar h.......
Bahot hi sundar Arun Sir ji
jabrdast .... :)
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