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Thursday, February 7, 2013

समंदर बचाना

नया इक फ़साना,
बुने दिल दिवाना,

दुखों से लबालब,
भरा है जमाना,

न कर दोस्ती दिल,
न दुश्मन बनाना,

कहाँ हो सुनो भी,
जरा पास आना,

कहो ठोकरों से,
कि चलना सिखाना,

बही हैं निगाहें,
समंदर बचाना,

नहीं प्रेम रस तो,
जहर ही पिलाना...

18 comments:

  1. Virendra Kumar SharmaFebruary 7, 2013 at 11:35 AM


    बढ़िया गजल छोटी बहर ,गजब का कहर

    दुखे दिल जो यारों न आंसू बहाना

    बनाकर मिटाना है किस्सा पुराना

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  2. Virendra Kumar SharmaFebruary 7, 2013 at 11:37 AM


    बढ़िया गजल छोटी बहर ,गजब का कहर

    है हिम्मत तुम्हारी तो आँखें मिलाना ,

    मिलाकर झुकाना ,झुका कर उठाना .

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  3. सदाFebruary 7, 2013 at 11:45 AM

    वाह .... क्‍या बात है ... इतने कम शब्‍दों में भी उम्‍दा प्रस्‍तुति

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  4. suresh agarwal adhirFebruary 7, 2013 at 12:44 PM

    bahut khoob...

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  5. Rajendra KumarFebruary 7, 2013 at 2:23 PM

    नहीं प्रेम रस तो,
    जहर ही पिलाना.
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,शब्द कम भाव ज्यादा।

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  6. madhu singhFebruary 7, 2013 at 2:53 PM

    बढ़िया गजल*** नहीं प्रेम रस तो,जहर ही पिलाना.

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  7. Reena MauryaFebruary 7, 2013 at 6:29 PM

    बहुत बढ़ियाँ...
    कम शब्दों में बेहतरीन भाव...
    :-)

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  8. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाFebruary 7, 2013 at 7:23 PM

    छोटी बहर में बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...

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  9. संध्या शर्माFebruary 7, 2013 at 11:02 PM

    वाह...इसे कहते है गागर में सागर भरना...शुभकामनायें

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  10. अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)February 8, 2013 at 7:50 AM

    गज़ब की गज़ल है
    गज़ब का तराना
    है छोटी सी मुट्ठी
    भरा है खजाना
    मेहनत से अपनी
    यूँ रंगत जमाना
    अचम्भा करे
    देख सारा जमाना.....


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  11. रविकरFebruary 8, 2013 at 8:48 AM

    आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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  12. डॉ. मोनिका शर्माFebruary 8, 2013 at 10:17 AM

    Bahut Umda...

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  13. सरिता भाटियाFebruary 8, 2013 at 11:04 AM

    bahut khub arun,jari rakhen
    गुज़ारिश : ''......यह तो मौसम का जादू है मितवा......''

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  14. Parveen MalikFebruary 8, 2013 at 2:45 PM

    बेहतरीन रचना के लिए बधाई !

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  15. Shalini RastogiFebruary 8, 2013 at 4:43 PM

    इक संक्षिप्त किन्तु गहरी भावाभिव्यक्ति!

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  16. Virendra Kumar SharmaFebruary 9, 2013 at 11:07 PM

    कहो ठोकरों से,
    कि चलना सिखाना,

    बही हैं निगाहें,
    समंदर बचाना,


    दोनों शैर बहुत ऊंचे पाए के हैं दोस्त .समुन्दर न डूब जाए कहीं आंसुओं में वल्लाह क्या बात है .देखे तुम्हें चाँद तो भूल जाए शुक्ल पक्ष में कदम रखना .शुक्रिया दोस्त हमें चर्चा मंच में बिठाने का .

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  17. संजय भास्‍कर अहर्निशFebruary 10, 2013 at 8:19 AM

    आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

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  18. दिगम्बर नासवाFebruary 10, 2013 at 6:10 PM

    छोटी बहर की मस्त गज़ल ... लाजवाब शेर ...

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