बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
bahut khub arun
ReplyDeleteगुज़ारिश : मौसम है आशिकाना.............
अन्धेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
ReplyDeleteउजाला जहाँ से मिटाने की जिद में,,,,
बहुत ही उम्दा गजल,,,अरुण जी ,,,शुभकामनाए,,,
RECENT POST... नवगीत,
अन्धेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
ReplyDeleteउजाला जहाँ से मिटाने की जिद में........
बहुत खूबसूरत रचना .... बधाई !
क्या खूब लिख गये दुसरो को संदेश देने के जिद में,अतिसुन्दर।
ReplyDeleteबहुत जरुरी सन्देश देती रचना...इस जिद में इंसान ने इंसानियत भुला दी है...
ReplyDeleteअतिसुन्दर सन्देश ,अन्धेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
ReplyDeleteउजाला जहाँ से मिटाने की जिद में,,,,
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteशुभकामनायें -
न छत मिल सकी ना जमीं मिल सकी है
ReplyDeleteलुटा आशियां , घर बसाने की जिद में ||
न छत मिल सकी ना जमीं मिल सकी है
ReplyDeleteलुटा आशियां , घर बसाने की जिद में ||
accha sandesh deti behtarin rachana...
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-02-2013) के चर्चा मंच-1157 (बिना किसी को ख़बर किये) पर भी होगी!
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कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर सन्देश लाज़वाब...बहूत ही उत्कृष्ट और प्रेरक अभिव्यक्ति..आभार
ReplyDelete
ReplyDeleteभुला ना सके हम भुलाने की जिद में ,
बरसों लगे यूं आजमाने की जिद में .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है अनंत भाई .
अनंत भाई बहुत अच्छे | बधाई
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
जो नव -उद्गार मन जगे खूबसूरत ,
ReplyDeleteगजल बन गयी व्यक्त करने की जिद में
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
ReplyDeleteसुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,waah...very nice.....
शुक्रिया हमें चर्चा मंच पे बिठाने की .
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeletehttp://voice-brijesh.blogspot.com
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
ReplyDeleteसुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,...बेहतरीन शेर अरुण जी!