सभी को लगे खूब प्यारा समन्दर,
सुहाना ये नमकीन खारा समन्दर,
नसीबा के चलते गई डूब कश्ती,
मगर दोष पाये बेचारा समन्दर,
दिनों रात लहरों से करता लड़ाई,
थका ना रुका ना ही हारा समन्दर,
कई राज गहरे छुपाकर रखे है,
नहीं खोलता है पिटारा समन्दर,
सुबह शाम चाहे कड़ी दोपहर हो,
हजारों का इक बस सहारा समन्दर.
बढ़िया गजल है भाई अरुण जी-
ReplyDeleteशुभकामनायें -
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteबहुत खूब !और हम हैं शीराज़ा बिखेर देते हैं सरे आम .
ReplyDeleteकई राज गहरे छुपाकर रखे है,
नहीं खोलता है पिटारा समन्दर,कितनी तो हलचल है संघर्ष है समुन्दर के नीचे लेकिन घर की बात घर में ही रहती है .बहुत बढ़िया अशआर है .
दिनों रात लहरों से करता लड़ाई,
ReplyDeleteथका ना रुका ना ही हारा समन्दर,
बहुत सुन्दर भाव...
बहुत खूब अरुण
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब कहा आपने ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल है,प्यारा भी.इसी बात पर...
ReplyDeleteदुनियाँ न देखता था समन्दर में कैद था,
मैं जाने कब से अपने मुकदर में कैद था.
बहुत सुन्दर गज़ल ,,,, विशेष रूप से यह शेर
ReplyDeleteनसीबा के चलते गई डूब कश्ती,
मगर दोष पाये बेचारा समन्दर,....
वाह !!! बहुत सुन्दर गजल,,,शुभकामनाए,,अरुण जी
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
शुक्रिया ज़नाब का ,टिप्पणियों का आपकी . .
ReplyDeleteजिजीविषा को प्रेरित करे नित समन्दर ,
है मेरे भी तेरे भी अन्दर समन्दर .
bahut badhiya ........gazal.......
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ReplyDeleteसमुन्दर का रूपक आपने आखिर तक निभाया है इस गजल में .आखिर तक .अर्थ और भाव एक ताल एक लय रहें हैं गजल में .शुक्रिया हमें चर्चा मंच में बिठाने का .प्रीत बढाने का .अपनापन लुटाने का .
कई राज गहरे छुपाकर रखे है,
ReplyDeleteनहीं खोलता है पिटारा समन्दर,...
जिस दिन उसने अपना राज खोला सैलाब आ जाएगा ...
हर शेर लाजवाब ...