(बह्र: बहरे मुजारे मुसमन अखरब)
(वज्न: २२१, २१२२, २२१, २१२२)
दुष्कर्म पापियों का भगवान हो रहा है,
जिन्दा हमारे भीतर शैतान हो रहा है,
जुल्मो सितम तबाही फैली कदम-२ पे,
अपराध आज इतना आसान हो रहा है,
इन्साफ की डगर में उभरे तमाम कांटे,
मासूम मुश्किलों में कुर्बान हो रहा है,
कुदरत दिखा करिश्मा संसार को बचा ले,
जलके तेरा जमाना शमशान हो रहा है,
खामोश देख रब को रोया उदास भी हूँ,
पिघला नहीं खुदा दिल हैरान हो रहा है...
वाह ... बहुत ही जरदस्त लिखा है आपने ... बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुति की
ReplyDeleteआभार सदा दी
Deleteआपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 06/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार यशोदा दी
Deleteएक न एक दिन कुदरत का कहर तो आएगा ,मिटाकर पापियों को फिर से रामराज्य बनाएगा। बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशुक्रिया राजेंद्र भाई
Deleteबहुत ही उम्दा भावपूर्ण गजल,,,,अरुन जी
ReplyDeleteRECENT POST बदनसीबी,
धन्यवाद धीरेन्द्र सर
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