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Sunday, February 24, 2013

ग़ज़ल : जिद में



1.  बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
 
दिलों की कहानी बनाने की जिद में,
लुटा दिल मेरा प्यार पाने की जिद में,

बिना जिसके जीना मुनासिब नहीं था,
उसे खो दिया आजमाने की जिद में,

मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,

घुटन बेबसी लौट घर फिर से आई,
रहा कुछ नहीं सब बचाने की जिद में,  

तमाशा बना जिंदगी का हमेशा, 
शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....

22 comments:

  1. Ayodhya PrasadFebruary 24, 2013 at 11:30 AM

    बहुत खूब...

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  2. सरिता भाटियाFebruary 24, 2013 at 11:48 AM

    सुन्दर रचना ,ऐसे ही दिल के शब्दों को पन्नों पर उतारते रहो

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  3. Aamir DubaiFebruary 24, 2013 at 12:20 PM

    कमाल लिखते हो यार। मै आपकी नज्मो ग़ज़ल को पढने के लिए अलग से समय निकालता हूँ।

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  4. Rajendra KumarFebruary 24, 2013 at 2:29 PM

    बहुत ही सुन्दरतम मित्रवर,किन्तु तीसरे शेर पर अमल नही करेंगे.

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  5. Reena MauryaFebruary 24, 2013 at 8:44 PM

    जिद में तो सब कुछ हाथ से निकल जाता है...
    बहुत ही बढ़ियाँ गजल...
    :-)

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  6. Virendra Kumar SharmaFebruary 24, 2013 at 11:17 PM

    बहुत खूब लिखा है .इस पर हमने फेस बुक पर भी टिप्पणी की थी .........

    मिला कुछ नहीं उनको पाने की जिद में ,

    वो रुपहले सपने सजाने की जिद में .

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  7. Virendra Kumar SharmaFebruary 24, 2013 at 11:17 PM

    आपकी टिपण्णी हमें प्रासंगिक बनाए रहती है ,ऊर्जित करती है .शुक्रिया आपका तहे दिल से .

    आपकी प्रस्तुति के नाम एक शैर -मकतबे इश्क का दस्तूर निराला देखा ,उसको छुट्टी न मिली जिसने सबक याद किया .बहुत बढ़िया लिखा है

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  8. चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’February 24, 2013 at 11:44 PM

    वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  9. Shalini RastogiFebruary 25, 2013 at 12:13 AM

    अगरचे जिद है तुम्हें हमसे रूठ जाने की
    हम भी जिद लिए बैठे हैं, तुम्हें अपना बनाने की!.... बहुत लाजवाब गज़ल लिखी है अरुण जी!

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  10. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाFebruary 25, 2013 at 1:01 AM

    गजल लिखने में आपने महारत हासिल कर ली है,,,,बधाई शुभकामनाए,,,

    Recent post: गरीबी रेखा की खोज

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  11. महेन्द्र श्रीवास्तवFebruary 25, 2013 at 8:08 AM

    बहुत सुंदर अरुण
    शायद मैं पहली बार यहां आ पाया हूं, बहुत अच्छा लगा।

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  12. Aziz JaunpuriFebruary 25, 2013 at 9:22 AM

    vah kya khoob ,behatareen zid khoobshurat gazal

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  13. रविकरFebruary 25, 2013 at 10:25 AM

    सटीक अभिव्यक्ति ।
    बढिया --

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  14. Pratibha VermaFebruary 25, 2013 at 11:05 AM

    आभार... बढिया...अभिव्यक्ति!!!

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  15. सदाFebruary 25, 2013 at 11:25 AM

    वाह ... बहुत ही बढिया।

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  16. दिगम्बर नासवाFebruary 25, 2013 at 12:43 PM

    मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
    ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,..

    सच लिखा है ... दुश्मनी निभाने की जिद्द में सब कुछ लुट जाता है ...
    लाजवाब गज़ल है अरुण जी .....

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  17. ritu saxenaFebruary 25, 2013 at 5:11 PM

    तमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
    शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....
    बेहतरीन अभिव्यक्ति साभार

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  18. Kalipad "Prasad"February 25, 2013 at 6:19 PM

    बहुत सुंदर गज़ल !
    latest postअनुभूति : कुम्भ मेला

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  19. HARSHVARDHANFebruary 25, 2013 at 6:23 PM

    शानदार रचना। :)

    नया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर

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  20. Parveen MalikFebruary 26, 2013 at 9:04 AM

    ज़िन्दगी बिखरती ही चली गयी ,
    ज्यादा से ज्यादा सजाने की जिद में ...

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  21. Kailash SharmaFebruary 27, 2013 at 10:49 PM

    लाज़वाब...बेहतरीन ग़ज़ल..

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  22. vandanaMarch 18, 2013 at 6:18 AM

    तमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
    शराफत से सर ये झुकाने की जिद में...

    बहुत बढ़िया

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