1. बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
दिलों की कहानी बनाने की जिद में,
लुटा दिल मेरा प्यार पाने की जिद में,
बिना जिसके जीना मुनासिब नहीं था,
उसे खो दिया आजमाने की जिद में,
मिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,
घुटन बेबसी लौट घर फिर से आई,
रहा कुछ नहीं सब बचाने की जिद में,
तमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
शराफत से सर ये झुकाने की जिद में....
बहुत खूब...
ReplyDeleteसुन्दर रचना ,ऐसे ही दिल के शब्दों को पन्नों पर उतारते रहो
ReplyDeleteकमाल लिखते हो यार। मै आपकी नज्मो ग़ज़ल को पढने के लिए अलग से समय निकालता हूँ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरतम मित्रवर,किन्तु तीसरे शेर पर अमल नही करेंगे.
ReplyDeleteजिद में तो सब कुछ हाथ से निकल जाता है...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़ियाँ गजल...
:-)
बहुत खूब लिखा है .इस पर हमने फेस बुक पर भी टिप्पणी की थी .........
ReplyDeleteमिला कुछ नहीं उनको पाने की जिद में ,
वो रुपहले सपने सजाने की जिद में .
आपकी टिपण्णी हमें प्रासंगिक बनाए रहती है ,ऊर्जित करती है .शुक्रिया आपका तहे दिल से .
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति के नाम एक शैर -मकतबे इश्क का दस्तूर निराला देखा ,उसको छुट्टी न मिली जिसने सबक याद किया .बहुत बढ़िया लिखा है
वाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
अगरचे जिद है तुम्हें हमसे रूठ जाने की
ReplyDeleteहम भी जिद लिए बैठे हैं, तुम्हें अपना बनाने की!.... बहुत लाजवाब गज़ल लिखी है अरुण जी!
गजल लिखने में आपने महारत हासिल कर ली है,,,,बधाई शुभकामनाए,,,
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
बहुत सुंदर अरुण
ReplyDeleteशायद मैं पहली बार यहां आ पाया हूं, बहुत अच्छा लगा।
vah kya khoob ,behatareen zid khoobshurat gazal
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबढिया --
आभार... बढिया...अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteमिली कब ख़ुशी दुश्मनी में किसी को,
ReplyDeleteख़तम हो गया सब निभाने की जिद में,..
सच लिखा है ... दुश्मनी निभाने की जिद्द में सब कुछ लुट जाता है ...
लाजवाब गज़ल है अरुण जी .....
तमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
ReplyDeleteशराफत से सर ये झुकाने की जिद में....
बेहतरीन अभिव्यक्ति साभार
बहुत सुंदर गज़ल !
ReplyDeletelatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
शानदार रचना। :)
ReplyDeleteनया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर
ज़िन्दगी बिखरती ही चली गयी ,
ReplyDeleteज्यादा से ज्यादा सजाने की जिद में ...
लाज़वाब...बेहतरीन ग़ज़ल..
ReplyDeleteतमाशा बना जिंदगी का हमेशा,
ReplyDeleteशराफत से सर ये झुकाने की जिद में...
बहुत बढ़िया