(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२)
बुना कैसे जाये फ़साना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
जहर से भरा तीर नैनों से मारा,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,
किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,
बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,
मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,
समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.
बिना डुबकियों के नहाना न आया.
प्रभावी प्रस्तुति है भाई अरुण |
ReplyDeleteशुभकामनायें-
वाह वाह !!! क्या बात बहुत सुंदर ,,,,अरुन जी ,,,,
ReplyDeleteRECENT POST शहीदों की याद में,
Badhai ...Arun ji ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर ,वाह वाह
ReplyDeleteवाह .... बहुत खूब कहा आपने हर शेर लाजवाब
ReplyDeleteअतिसुन्दर,प्रभावी प्रस्तुती।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़ियाँ..
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन...
:-)
चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
ReplyDeleteहुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
ये हुनर तो किसी के भी पास नहीं होता ... तभी तो बस खुदा होता है खुदा ... लाजवाब शेर ...
जिंदगी कि सच्चाई को उजागर करते बेहतरीन ख्यालात!
ReplyDeleteश्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बेहतरीन,सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह... बहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteदिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
ReplyDeleteखुदी को कभी पर दिलाना न आया,
bahut sahi kaha ........arun jee.......
वाह,वाह !!
ReplyDeleteपुरअसर एक बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ! हर शेर लाजवाब है !
ReplyDeleteनिसंदेह सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति दी है आपने अरुण जी !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...
ReplyDeleteबहुत खूब...बधाई..
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
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