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Friday, February 1, 2013

बुना कैसे जाये फ़साना न आया

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२) 

बुना कैसे जाये फ़साना न आया,  
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,

लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,

चला कारवां चार कंधों पे सजकर,  
हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,

दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,  
खुदी को कभी पर दिलाना न आया,

जहर से भरा तीर नैनों से मारा,  
जरा सा भी खुद को बचाना न आया,

किताबें न कुछ बांचने से मिलेगा,
बिना ज्ञान दर्पण दिखाना न आया,

बुढ़ापे ने दी जबसे दस्तक उमर पे,  
रुके ये कदम फिर चलाना न आया,

मुहब्बत का मैंने दिया बेसुधी में,  
बुझा तो दिया पर जलाना न आया,

समंदर के भीतर कभी कश्तियों को,
बिना डुबकियों के नहाना न आया.

20 comments:

  1. रविकरFebruary 1, 2013 at 1:24 PM

    प्रभावी प्रस्तुति है भाई अरुण |
    शुभकामनायें-

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  2. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाFebruary 1, 2013 at 1:36 PM

    वाह वाह !!! क्या बात बहुत सुंदर ,,,,अरुन जी ,,,,

    RECENT POST शहीदों की याद में,

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  3. suresh agarwal adhirFebruary 1, 2013 at 2:09 PM

    Badhai ...Arun ji ..

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  4. madhu singhFebruary 1, 2013 at 3:38 PM

    बहुत सुंदर ,वाह वाह

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  5. सदाFebruary 1, 2013 at 5:08 PM

    वाह .... बहुत खूब कहा आपने हर शेर लाजवाब

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  6. Rajendra KumarFebruary 2, 2013 at 11:06 AM

    अतिसुन्दर,प्रभावी प्रस्तुती।

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  7. Reena MauryaFebruary 2, 2013 at 10:37 PM

    बहुत ही बढ़ियाँ..
    बहुत ही बेहतरीन...
    :-)

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  8. दिगम्बर नासवाFebruary 6, 2013 at 4:16 PM

    चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
    हुनर था बहुत पर जिलाना न आया,
    ये हुनर तो किसी के भी पास नहीं होता ... तभी तो बस खुदा होता है खुदा ... लाजवाब शेर ...

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  9. Shalini RastogiFebruary 8, 2013 at 4:57 PM

    जिंदगी कि सच्चाई को उजागर करते बेहतरीन ख्यालात!

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  10. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)February 22, 2013 at 5:51 PM

    श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  11. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)February 22, 2013 at 5:51 PM

    श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  12. Aziz JaunpuriFebruary 23, 2013 at 6:25 AM

    बेहतरीन,सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति

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  13. डॉ. मोनिका शर्माFebruary 23, 2013 at 6:48 AM

    वाह... बहुत सुंदर पंक्तियाँ

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  14. Dr.NISHA MAHARANAFebruary 23, 2013 at 9:14 AM

    दिलासा सभी को सभी बाँटते हैं,
    खुदी को कभी पर दिलाना न आया,
    bahut sahi kaha ........arun jee.......

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  15. प्रतिभा सक्सेनाFebruary 23, 2013 at 9:34 AM

    वाह,वाह !!

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  16. Sadhana VaidFebruary 23, 2013 at 10:24 AM

    पुरअसर एक बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ! हर शेर लाजवाब है !

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  17. पूरण खण्डेलवालFebruary 23, 2013 at 10:59 AM

    निसंदेह सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति दी है आपने अरुण जी !!

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  18. Pratibha VermaFebruary 23, 2013 at 1:14 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...

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  19. रश्मि शर्माFebruary 23, 2013 at 2:37 PM

    बहुत खूब...बधाई..

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  20. OnkarFebruary 23, 2013 at 2:55 PM

    सुन्दर ग़ज़ल

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