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शुक्रवार, 1 मार्च 2013

चंद - पंक्तियाँ

1. 
मेरी कीमत लगाता बजारों में था.
वो जो मेरे लिए इक हजारों में था.
कब्र की मुझको दो गज जमीं ना मिली,
आशियाँ उसका देखो सितारों में था.
 2. 
लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए,

3. 
 गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
उनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,
4.

गुलशन में फूल मेरे खिलते हैं आपसे,
ख्वाबों में रोज घंटों मिलते हैं आपसे,
खिल के है मुस्कुराई थी मायूस जिंदगी,
सदियों के जख्म गहरे सिलते हैं आपसे..

13 टिप्‍पणियां:

  1. महेन्द्र श्रीवास्तव1 मार्च 2013 को 6:08 pm

    क्या बात है, बहुत सुंदर

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  2. धीरेन्द्र सिंह भदौरिया1 मार्च 2013 को 7:41 pm

    बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,वाह !!! क्या बात है,,,अरुन जी,,

    RECENT POST: पिता.

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  3. गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
    उनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
    सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
    जीने के आज सारे आसार ख़तम,.......सोंचा शब्द यहाँ अखरता है -सोचा था ,ज़िन्दगी थोड़ी सी प्यारकी .....बेहतरीन प्रयोग कर रहें हैं आप भाव अर्थ और रूपक तथा गजल के फॉर्म पर .

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  4. बहुत ही सुन्दर लाजबाब शैर है जनाब,आभार.

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  5. वाह ... बहुत ही बढिया।

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  6. सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं ..बेहद उम्दा!

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  7. डॉ. मोनिका शर्मा3 मार्च 2013 को 7:09 am

    बहुत उम्दा पंक्तियाँ

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  8. दिल की आवाज़3 मार्च 2013 को 11:54 am

    बहुत बढ़िया पंक्तियाँ हैं अरुण जी ... बधाई !

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  9. रचना दीक्षित3 मार्च 2013 को 1:40 pm

    बहुत उम्दा और लाजवाब अशआर.

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  10. behatareen andaz me lazwab gazal,

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  11. बहुत ही बढ़ियाँ गजल....
    :-)

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  12. nc ---------------bt i dipressed

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  13. दिगम्बर नासवा10 मार्च 2013 को 1:07 pm

    लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
    तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
    निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
    कांटे तमाम वापस आने में लग गए,

    बहुत खूब ... सभी मुक्तक लाजवाब हैं ... ये कुछ खास है ...

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