1.
मेरी कीमत लगाता बजारों में था.
वो जो मेरे लिए इक हजारों में था.
कब्र की मुझको दो गज जमीं ना मिली,
आशियाँ उसका देखो सितारों में था.
2.
लाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
तुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए,
3.
गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
उनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,
4.
गुलशन में फूल मेरे खिलते हैं आपसे,
ख्वाबों में रोज घंटों मिलते हैं आपसे,
खिल के है मुस्कुराई थी मायूस जिंदगी,
सदियों के जख्म गहरे सिलते हैं आपसे..
क्या बात है, बहुत सुंदर
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति,,,वाह !!! क्या बात है,,,अरुन जी,,
प्रत्युत्तर देंहटाएंRECENT POST: पिता.
गुलशन लुटा दिल का बाजार ख़तम,
प्रत्युत्तर देंहटाएंउनमें हमारे वास्ते था प्यार ख़तम,
सोंचा थी जिंदगी थोड़ी सी प्यार की
जीने के आज सारे आसार ख़तम,.......सोंचा शब्द यहाँ अखरता है -सोचा था ,ज़िन्दगी थोड़ी सी प्यारकी .....बेहतरीन प्रयोग कर रहें हैं आप भाव अर्थ और रूपक तथा गजल के फॉर्म पर .
बहुत ही सुन्दर लाजबाब शैर है जनाब,आभार.
प्रत्युत्तर देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढिया।
प्रत्युत्तर देंहटाएंसभी शेर एक से बढ़कर एक हैं ..बेहद उम्दा!
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत उम्दा पंक्तियाँ
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत बढ़िया पंक्तियाँ हैं अरुण जी ... बधाई !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत उम्दा और लाजवाब अशआर.
प्रत्युत्तर देंहटाएंbehatareen andaz me lazwab gazal,
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत ही बढ़ियाँ गजल....
प्रत्युत्तर देंहटाएं:-)
nc ---------------bt i dipressed
प्रत्युत्तर देंहटाएंलाखों उपाय दिलको मनाने में लग गए,
प्रत्युत्तर देंहटाएंतुमको कई जनम भुलाने में लग गए,
निकले थे घर से हम भी गुस्से में रूठ के,
कांटे तमाम वापस आने में लग गए,
बहुत खूब ... सभी मुक्तक लाजवाब हैं ... ये कुछ खास है ...