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Sunday, February 17, 2013

बसंत - गीत

जब ऋतुराज विहँस आता है,तन-मन निखर-निखर जाता है
पुलकित  होकर  मन  गाता  है ,  प्यारा यह  मौसम भाता है 

अमराई  बौराई  फिर से , हरियाली  लहराई फिर से,
कोयल फिर उपवन में बोले, मीठी-मीठी मिश्री घोले,
हृदय लुटाता प्रणय जताता, भ्रमर कली पर मंडराता है.     
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम  भाता है.

बाली गेहूँ की लहराई, झूमी मदमाती पुरवाई,
पागल है भौंरा फूलों में, झूले मेरा मन झूलों में,
मस्ती में सरसों का सुन्दर,  पीला आँचल लहराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम भाता है. 


पेड़ों में नवपल्लव साजे, ढोल मँजीरा घर-घर बाजे,
महकी फूलों की फुलवारी, सजी धरा दुल्हन सी प्यारी,
धीमी-मध्यम तेजी गति से, बादल नभ में मँडराता है.
पुलकित होकर मन गाता है, प्यारा यह मौसम  भाता है.
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