सूखे हुए पौधों में अब जान फूंक जाओ,
घनघोर घटा लेकर मेरे भी शहर आओ,
सूर्यदेव काम अपना बखूबी निभा रहे हैं,
साथ - २ धुप के शोले भी गिरा रहे हैं,
अब आपकी है बारी यूँ पीठ न दिखाओ,
खुले आसमाँ को भुजाओं में जकड जाओ,
सुखी हुई जमीं है, १०० फुट घंसी नमी है,
सुबह नहीं सुहानी, और शाम में कमी है,
सागर की जरुरत गागर न गिराओ,
मोटी - २ बूंदों से तालाब भर जाओ........
बदल राजा आओ बारिश ले आओ
बड़ी देर हो गयी अब तो चले आओ..........
घनघोर घटा लेकर मेरे भी शहर आओ,
सूर्यदेव काम अपना बखूबी निभा रहे हैं,
साथ - २ धुप के शोले भी गिरा रहे हैं,
अब आपकी है बारी यूँ पीठ न दिखाओ,
खुले आसमाँ को भुजाओं में जकड जाओ,
सुखी हुई जमीं है, १०० फुट घंसी नमी है,
सुबह नहीं सुहानी, और शाम में कमी है,
सागर की जरुरत गागर न गिराओ,
मोटी - २ बूंदों से तालाब भर जाओ........
बदल राजा आओ बारिश ले आओ
बड़ी देर हो गयी अब तो चले आओ..........
ये बादल जरूर आयंगे ... बारिश भी लेंगे ...
प्रत्युत्तर देंहटाएंअब तो इनको आ ही जाना चाहिए...बहुत हो गया इंतज़ार...
प्रत्युत्तर देंहटाएंसार्थक गुहार, हमारा सुर भी इसमें मिला लीजिए!
प्रत्युत्तर देंहटाएंकैलाश SIR बिलकुल ठीक कहा आपने. शास्त्री SIR क्यूँ नहीं बिलकुल. बहरहाल बहुत -२ शुक्रिया .....
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत हो गया इंतज़ार...
प्रत्युत्तर देंहटाएंबिलकुल अब तो आ जाना ही चाहिए.
प्रत्युत्तर देंहटाएंवाह ... बेहतरीन भाव लिए अच्छी प्रस्तुति।
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुक्रिया सदा जी!!
प्रत्युत्तर देंहटाएंहम लोगों की कलम जरूर एक दिन घन घट में सुराख कर देगी ...बहुत सुन्दर लिखा है आपने
प्रत्युत्तर देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा आपने!!!!!
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