ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत मेरी ग़ज़ल :-
                                          (बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)
                                          
                                          .......................................
                                          जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
                                          उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,
                                          
                                          यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
                                          अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,
                                          
                                          मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
                                          दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,
                                          
                                          अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
                                          निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,
                                          
                                          जुदाई की घडी में आज कल मैं,
                                          तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..
                                        
                                        
                                       
                                      
                                    
क्या बात, बढिया
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत खूब, सुंदर गजल ,,,
प्रत्युत्तर देंहटाएंRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
शुभ प्रभात
प्रत्युत्तर देंहटाएंएक बेहतरीन ग़ज़ल
इसे मैं अपनी धरोहर में संजोना चाहती हूँ
पर असफल हुई
कृपया कॉपी दें
सादर
वाह ! अतिसुन्दर …बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार।
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
प्रत्युत्तर देंहटाएंआभार -
waah bahut badhiya
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत खुबसूरत!!
प्रत्युत्तर देंहटाएंwow lovely gazal :-)
प्रत्युत्तर देंहटाएंhttp://hindustanisakhisaheli.blogspot.com/
wow lovely gazal http://hindustanisakhisaheli.blogspot.com/
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
प्रत्युत्तर देंहटाएंअनु
बहुत ही सुन्दर रचना।
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर रचना...
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल ...!!
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर. गजल !!
प्रत्युत्तर देंहटाएंयकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
प्रत्युत्तर देंहटाएंअभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,
hmmmm..ye sher to bahut psnd aayaa mujhe aur ghzal bhi khoob he
take care
सुन्दर अभिव्यक्ति !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (05.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
प्रत्युत्तर देंहटाएंअकेला रात की बाँहों में छुपकर,
प्रत्युत्तर देंहटाएंनिगाहों की नमी छलका रहा हूँ,..
खूबसूरत बिम्ब से सजा शेर ... रात की बाहों का प्रयोग लाजवाब है इस गज़ल में ...
बहुत ही बेहतरीन गजल...
प्रत्युत्तर देंहटाएं:-)
अरुण भाई मेरी और से ढेरो बधाई स्वीकार करे ,
प्रत्युत्तर देंहटाएंलयात्मक गत्यात्मक अर्थ पूर्ण खूब सूरत रचना भाव और अर्थ की सुन्दर अन्विति समस्वरता है रचना में। हर शैर एक राग लिए है मन का।
प्रत्युत्तर देंहटाएंलयात्मक गत्यात्मक अर्थ पूर्ण खूब सूरत रचना भाव और अर्थ की सुन्दर अन्विति समस्वरता है रचना में। हर शैर एक राग लिए है मन का।
प्रत्युत्तर देंहटाएंलयात्मक गत्यात्मक अर्थ पूर्ण खूब सूरत रचना भाव और अर्थ की सुन्दर अन्विति समस्वरता है रचना में। हर शैर एक राग लिए है मन का।
प्रत्युत्तर देंहटाएंयकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
प्रत्युत्तर देंहटाएंअभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,
मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,
क्या बात है अरुन जी बहोत खूब ।
सुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना। कभी यहाँ भी पधारें।
प्रत्युत्तर देंहटाएंसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
khubsurat gazal....sahaz abhiwyakti....
प्रत्युत्तर देंहटाएंमुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
प्रत्युत्तर देंहटाएंदिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,
bohat khoob
क्या बात है अरुन जी बहोत खूब ।
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