पूजा करूँ तुझको, पत्थर बना के,
सोता रहूँ जीवन भर, चैन से मैं,
काटों तले अपना, बिस्तर बना के,
चल दी कहाँ ऐसे, जल्दी जुदा हो,
मेरी दशा इतनी, बत्तर बना के,
ना तो दुआ से, ना राहत दवा से,
तुमने थमाया गम, गठ्ठर बना के,
शिकवा गिला करता हूँ, रोज़ तुझसे,
तेरे खयालों का, उत्तर बना के....
दुश्मन तुझे दिल का, कट्टर बना के,
ReplyDeleteपूजा करूँ तुझको, पत्थर बना के,
वाह|||
क्या दुश्मनी निभाई है सर जी...
बहुत खूब....
:-)
शुक्रिया रीना जी ये इश्क की दुश्मनी है कुछ अलग तो होनी चाहिए ना
Deleteजी सही कह रहे है..:-)
Deleteबहुत शानदार गज़ल...शुभकामनाएँ अरुन जी
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया संजय भाई
Deleteभावनाओं को परिभाषित करने में सफल रचना सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत-२, शुक्रिया आपको मेरी रचना पसंद आई.
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ReplyDeleteशिकवा गिला करता हूँ, रोज़ तुझसे,
तेरे खयालों का, उत्तर बना के....
दिया था दिल तुझे रखने को ,
तूने लौटा दिया जलाके .
बढ़िया प्रस्तुति है दोस्त नया अंदाज़ .
वाह वीरेन्द्र जी क्या बात है, धन्यवाद
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