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Thursday, August 16, 2012

मामला है दिल्लगी का

मामला है दिल्लगी का और कोई बात नहीं,
उलझनों में घिर चुका हूँ चैन मेरे साथ नहीं,

भूल जाऊं मैं तुझे या रोज़ तुझको याद करूँ,
सुबह ना अच्छी लगे ये शाम भी कुछ खास नहीं,

अजब सी ये कशमश, है डंसती हर रोज़ मुझे,
जिंदगी उलझी कहीं अब ठीक भी हालात नहीं,

फूल मुझको चुभ रहे हैं, हौंसला है पस्त हुआ,
जख्म मुझमे पल रहे हैं, सु:ख की बारात नहीं,

टूट कर बिखरा हूँ ऐसे जख्म पाये चोट लगी,
और वो बोले कि इसमें यार मेरा हाँथ नहीं...............

8 comments:

  1. N QuamarAugust 16, 2012 at 10:59 PM

    टूट कर बिखरा हूँ ऐसे जख्म पाये चोट लगी,
    और वो बोले कि इसमें यार मेरा हाँथ नहीं!

    Bahut Khoob..

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    1. अरुन शर्माAugust 19, 2012 at 12:30 PM

      बहुत-२ शुक्रिया

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  • dheerendraAugust 17, 2012 at 12:27 AM

    लाजबाब बेहतरीन गजल,,,,,बधाई अरुण जी,,,,,

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
    RECENT POST...: शहीदों की याद में,,

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    1. अरुन शर्माAugust 19, 2012 at 12:30 PM

      आदरणीय धीरेन्द्र सर तहे दिल से अभिवादन

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  • Reena MauryaAugust 19, 2012 at 5:47 PM

    मामला है दिल्लगी का और कोई बात नहीं,
    उलझनों में घिर चुका हूँ चैन मेरे साथ नहीं,

    भूल जाऊं मैं तुझे या रोज़ तुझको याद करूँ,
    सुबह ना अच्छी लगे ये शाम भी कुछ खास नहीं,
    आहा |||
    बहुत गजब की पंक्तिया है....

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    1. अरुन शर्माAugust 19, 2012 at 5:54 PM

      रीना जी सराहना के लिए बहुत-२ आभार....

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  • दिगम्बर नासवाAugust 21, 2012 at 2:18 PM

    जब फूल चुभने लगते हैं तो जीना दूभर हो जाता है ...
    लाजवाब लिखते हैं आप ...

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    1. अरुन शर्माAugust 22, 2012 at 10:17 AM

      आदरणीय दिगम्बर जब आप जैसे महान कलाकार से इतनी सराहना मिलती है तो ह्रदय गद-गद हो जाता है .

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