मामला है दिल्लगी का और कोई बात नहीं,
उलझनों में घिर चुका हूँ चैन मेरे साथ नहीं,
भूल जाऊं मैं तुझे या रोज़ तुझको याद करूँ,
सुबह ना अच्छी लगे ये शाम भी कुछ खास नहीं,
अजब सी ये कशमश, है डंसती हर रोज़ मुझे,
जिंदगी उलझी कहीं अब ठीक भी हालात नहीं,
फूल मुझको चुभ रहे हैं, हौंसला है पस्त हुआ,
जख्म मुझमे पल रहे हैं, सु:ख की बारात नहीं,
टूट कर बिखरा हूँ ऐसे जख्म पाये चोट लगी,
और वो बोले कि इसमें यार मेरा हाँथ नहीं...............
टूट कर बिखरा हूँ ऐसे जख्म पाये चोट लगी,
ReplyDeleteऔर वो बोले कि इसमें यार मेरा हाँथ नहीं!
Bahut Khoob..
बहुत-२ शुक्रिया
Deleteलाजबाब बेहतरीन गजल,,,,,बधाई अरुण जी,,,,,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
आदरणीय धीरेन्द्र सर तहे दिल से अभिवादन
Deleteमामला है दिल्लगी का और कोई बात नहीं,
ReplyDeleteउलझनों में घिर चुका हूँ चैन मेरे साथ नहीं,
भूल जाऊं मैं तुझे या रोज़ तुझको याद करूँ,
सुबह ना अच्छी लगे ये शाम भी कुछ खास नहीं,
आहा |||
बहुत गजब की पंक्तिया है....
रीना जी सराहना के लिए बहुत-२ आभार....
Deleteजब फूल चुभने लगते हैं तो जीना दूभर हो जाता है ...
ReplyDeleteलाजवाब लिखते हैं आप ...
आदरणीय दिगम्बर जब आप जैसे महान कलाकार से इतनी सराहना मिलती है तो ह्रदय गद-गद हो जाता है .
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