यादों का मखमली गम ओढ़, सो नहीं पाता,
सब जाना चाहता हूँ भूल, हो नहीं पाता,
आया आराम ना मुझको दुआ, दवा भायी,
आँखों में झलकता है अश्क, रो नहीं पाता,
मैं प्यासा इक समंदर हूँ, कई महीनों से,
मुझको दीवानगी है याद, खो नहीं पाता,
पागल हो, भूल बैठा रात और दिन सारे,
पल दो पल का सुकूं हो चैन ढो नहीं पाता,
जिसको मैं ढूंढता हूँ हर घडी उदासी में,
करके बेताब मिल हर रोज़, वो नहीं पाता......
वाह,,, बहुत खूब, बढ़िया गजल,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
आदरणीय धीरेन्द्र जी स्नेह के लिए आभार
Deleteबहुत बढ़िया गजल...
ReplyDeleteपर हर समय मिलना भी तो संभव नहीं..
:-)
रीना जी तहे दिल से शुक्रिया बिलकुल हर समय मिलना मुमकिन नहीं होता
Deleteईद मुबारक !
ReplyDeleteआप सभी को भाईचारे के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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इस मुबारक मौके पर आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आदरणीय शास्त्री सर आपको भी ईद मुबारक, तहे दिल से शुक्रिया मेरी रचना चर्चामंच पर लगाने के लिए
Deleteसच है जिसकी तलाश रहती है जीवन की उदासी में ... वो कभी नहीं मिलता .. जीवन की रीत है ये ...
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा है आपने दिगम्बर जी
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