प्यार से मुझको, अनमोल नगीना दे दो,
जिंदगी को बस , इक और महीना दे दो,
हम जितना उनको देख मुस्कुराते चले गए,
वो उतना ही दिल कसम से दुखाते चले गए,
हुस्न की फिर से, कुछ अदाएं ढूंढ़ लाया हूँ,
आज अपनी खातिर, सजाएं ढूंढ़ लाया हूँ.....
दे धोखा फिरसे, तू फिर दिल्लगी कर ले,
अपनी वश में, तू मेरी हर ख़ुशी कर ले.....
मुझको नशा हुआ जैसे शराब का,
जो गम पढ़ लिया तेरी किताब का......
जिंदगी को बस , इक और महीना दे दो,
हम जितना उनको देख मुस्कुराते चले गए,
वो उतना ही दिल कसम से दुखाते चले गए,
हुस्न की फिर से, कुछ अदाएं ढूंढ़ लाया हूँ,
आज अपनी खातिर, सजाएं ढूंढ़ लाया हूँ.....
दे धोखा फिरसे, तू फिर दिल्लगी कर ले,
अपनी वश में, तू मेरी हर ख़ुशी कर ले.....
मुझको नशा हुआ जैसे शराब का,
जो गम पढ़ लिया तेरी किताब का......
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हर शेर लाजबाब , मुबारक हो
ReplyDeleteबहुत सुंदर लाजबाब शेर,,,,,अरुण जी,,,बधाई
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
आदरणीय रविकर जी, सुशील जी एवं धीरेन्द्र जी सराहना के लिए हार्दिक अभिनन्दन.
ReplyDeleteBahut Badhiya...Hardik Badhai
ReplyDeleteमोनिका जी सराहना के लिए आभार .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति अरुण जी बधाई
ReplyDeleteशालिनी जी स्नेह के लिए बहुत-२ आभार........
ReplyDeleteबहुत-बहुत बढ़िया गजल है...
ReplyDelete:-)बेहतरीन
धन्यवाद रीना जी
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