दो शब्द बोलता हूँ आज तेरी शान में,
कड़वाहट भर गयी है तेरी जबान में,
तूने दूसरों का दर्द जाने क्यूँ न समझा,
क्या पत्थर हैं लगाये दिल के मकान में,
खुशियाँ लुटा रही थी दिल में दुकान खोल,
मैंने जख्मों को कमाया तेरी दुकान में....
कड़वाहट भर गयी है तेरी जबान में,
तूने दूसरों का दर्द जाने क्यूँ न समझा,
क्या पत्थर हैं लगाये दिल के मकान में,
खुशियाँ लुटा रही थी दिल में दुकान खोल,
मैंने जख्मों को कमाया तेरी दुकान में....
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भाई
ReplyDeleteदर्दभरी रचना.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...