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Saturday, June 9, 2012

मैं सीलन की बस्ती

मैं सीलन की बस्ती, नमी का ठिकाना,
मुझमे बारिश के मौसम का है जमाना,
कि सदा छाये रहते हैं, यादों के बादल,
नहीं छोड़ेंगे बिन किये मुझको पागल,
महंगा साबित हुआ मेरा दिल लगाना,
जख्मों के खातिर मुझे चुन लिया है,
 ग़मों के धागों से मुझे बुन दिया है,
मैं उसके लिए इस जमीं का खज़ाना....

4 comments:

  1. संजय भास्करJune 9, 2012 at 9:14 PM

    वाह बहुत खूब

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  2. संजय भास्करJune 9, 2012 at 9:15 PM

    बहुत सुन्दर रचना...

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  3. अरुन शर्माJune 10, 2012 at 11:10 AM

    धन्यवाद संजय जी

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  4. umashankarJuly 14, 2012 at 8:12 PM

    मैं उसका दीवाना, मैं उसका दीवाना...

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