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Wednesday, June 6, 2012

रोज़ - २

रोज़ - २ मुझको निराश करती है,
मेरे बदन में दर्द तलाश करती है,
खफा है वो जिंदगी से इस कदर,
पल में जिन्दा पल में लाश करती है,
खुश हो कर देखा करती है तमाशा,
जब दिल्लगी मुझको उदास करती है....

2 comments:

  1. Kailash SharmaJune 6, 2012 at 8:34 PM

    वाह! बहुत सुन्दर...

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  2. अरुन शर्माJune 7, 2012 at 10:52 AM

    घन्यवाद बहुत बहुत शुक्रिया SIR

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