रोज़ - २ मुझको निराश करती है,
मेरे बदन में दर्द तलाश करती है,
खफा है वो जिंदगी से इस कदर,
पल में जिन्दा पल में लाश करती है,
खुश हो कर देखा करती है तमाशा,
जब दिल्लगी मुझको उदास करती है....
मेरे बदन में दर्द तलाश करती है,
खफा है वो जिंदगी से इस कदर,
पल में जिन्दा पल में लाश करती है,
खुश हो कर देखा करती है तमाशा,
जब दिल्लगी मुझको उदास करती है....
वाह! बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteघन्यवाद बहुत बहुत शुक्रिया SIR
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