बात दिल की निकल कर किताबों में आ गई,
वो आज रात फिर से मेरे खवाबों में आ गई,
मैंने पूंछा दिल से, दर्द की वजह है क्या,
उसकी सूरत नज़र मुझको जवाबों में आ गई,
मैंने सुना था कि होतें हैं फूल नाज़ुक, पर,
बड़ी बे-रहमियत अब गुलाबों में आ गई,
इक वो दवा, जो बे-मौत मार दे,
घुलकर इश्क से शबाबों में आ गई.........
वो आज रात फिर से मेरे खवाबों में आ गई,
मैंने पूंछा दिल से, दर्द की वजह है क्या,
उसकी सूरत नज़र मुझको जवाबों में आ गई,
मैंने सुना था कि होतें हैं फूल नाज़ुक, पर,
बड़ी बे-रहमियत अब गुलाबों में आ गई,
इक वो दवा, जो बे-मौत मार दे,
घुलकर इश्क से शबाबों में आ गई.........
वाह वाह, बेहतरीन रचना पढने मिली, आज से हम आपके फ़ालोवर बन गए। मिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में जहाँ रचा गया महाकाव्य मेघदूत।
ReplyDeleteबहुत -२ शुक्रिया ललित जी आपके भी ब्लॉग पर भ्रमण कर बड़ी प्रसंता हुई
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत ही सुन्दर,,,
ReplyDelete:-)
beautiful lines !
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