जिस्म पर दहकते हुए शोले लुटा गया,
जाने कहाँ से इतनी हिम्मत जुटा गया,
वो कहती रही की मैं मर जाऊँगी ,
मैं कदम ये भी एक दिन उठा गया....
यादों के पल जब भी दस्तक देते हैं,
अश्क झुका अपना मस्तक देते हैं,
जगा देते हैं सोये हुए ख्यालों को,
गुजरे लम्हों की पुस्तक देते हैं...
जाने कहाँ से इतनी हिम्मत जुटा गया,
वो कहती रही की मैं मर जाऊँगी ,
मैं कदम ये भी एक दिन उठा गया....
यादों के पल जब भी दस्तक देते हैं,
अश्क झुका अपना मस्तक देते हैं,
जगा देते हैं सोये हुए ख्यालों को,
गुजरे लम्हों की पुस्तक देते हैं...
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
प्रत्युत्तर देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सर्वप्रथम आपको प्रणाम.बहुत बहुत धन्यवाद आपका SIR ये आपका पहला कमेन्ट है मेरे ब्लॉग पर. इस कमेन्ट का बहुत बेशब्री से इंतज़ार था. आज मैं धन्य हो गया.
हटाएंAchhi prastuti
प्रत्युत्तर देंहटाएंAchhi prastuti
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर रचना
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...
प्रत्युत्तर देंहटाएं:-)
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प्रत्युत्तर देंहटाएं~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
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बेहतरीन रचना
दंतैल हाथी से मुड़भेड़
सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पढिए पेसल फ़ुरसती वार्ता,"ये तो बड़ा टोईंग है !!" ♥
♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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