नींद को पड़ी आदत, मुझे जगाने को,
दर्द कोशिश करता है, गुदगुदाने को,
जब से मैं सोया हूँ, सदा के लिए,
उसके दिल में जगी चाहत मुझे उठाने को,
जिंदगी मेरी अब खुद रूठ गयी मुझसे,
भर कर माफ़ी लायी है मुझे मनाने को.....
दर्द कोशिश करता है, गुदगुदाने को,
जब से मैं सोया हूँ, सदा के लिए,
उसके दिल में जगी चाहत मुझे उठाने को,
जिंदगी मेरी अब खुद रूठ गयी मुझसे,
भर कर माफ़ी लायी है मुझे मनाने को.....
सुन्दर पंक्तियाँ अरुण जी.....
ReplyDeleteशुक्रिया अनु जी
ReplyDeleteवाह क्या बात है ... नींद कों जगाने की आदत और दर्द कों दिल बहलाने की आदत ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगम्बर जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDelete:-)