आज मुझे दर्पण में तेरी सूरत नज़र आई,
लगता है तू मेरे साये की बन गई परछाई ,
आफत की नौकरी से मुसीबत है कमाई,
आगे खुदा कुवां है और पीछे गहरी खाई,
फैला है घना अँधेरा कुछ देता नहीं दिखाई,
किसने शहर से मेरे जलती आग है बुझाई,
अश्कों में डूबी आँखें, हैं पलकें भी नहाई,
बेमौसम कहाँ से किसने बरसात है बुलाई
तस्वीर तेरी जबसे दिल के अन्दर है बनाई,
हर साँस के साथ - 2 मुझमे जाती है समाई...
लगता है तू मेरे साये की बन गई परछाई ,
आफत की नौकरी से मुसीबत है कमाई,
आगे खुदा कुवां है और पीछे गहरी खाई,
फैला है घना अँधेरा कुछ देता नहीं दिखाई,
किसने शहर से मेरे जलती आग है बुझाई,
अश्कों में डूबी आँखें, हैं पलकें भी नहाई,
बेमौसम कहाँ से किसने बरसात है बुलाई
तस्वीर तेरी जबसे दिल के अन्दर है बनाई,
हर साँस के साथ - 2 मुझमे जाती है समाई...
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteधन्यवाद SIR
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