खोल दी खिड़की मगर धूप आती नहीं,
नमी मेरे घर की अब सूख पाती नहीं,
दीवारें सीलन से जर्ज़र हो चुकी हैं,
मगर प्यास पानी की बुझ पाती नहीं,
जब भी चाहती हैं हवाएं आ जाती हैं
कि इन हवाओं की भूख जाती नहीं.....
नमी मेरे घर की अब सूख पाती नहीं,
दीवारें सीलन से जर्ज़र हो चुकी हैं,
मगर प्यास पानी की बुझ पाती नहीं,
जब भी चाहती हैं हवाएं आ जाती हैं
कि इन हवाओं की भूख जाती नहीं.....
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