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Sunday, April 29, 2012

सजावट बढ गयी घर की मेरे जालों से

यादें तेरी जो मिटाई नहीं हैं सालों से,
सजावट बढ गयी घर की मेरे जालों से,
सोंचता हूँ फुर्सत में कोई काम करूँगा,
मगर छुटकारा मिलता नहीं खयालों से,
दिए में तेल नहीं और बत्ती भी गुल है,
घर का कोना कोना तरसा है उजालों से,
दर्द-वो-गम ये जखम और सितम क्यूँ,
जवाब आया नहीं लौट कर सवालों से,
रिहाई कैसे मिलती इस कैद से मुझको,
गुम गयी चाबी यारों, खुद तालों से,
अचानक छू गया एहसास तेरे आने का,
पलटते ही मिले छूटी खुशबू तेरे बालों से.........

3 comments:

  1. M VERMAApril 29, 2012 at 5:44 PM

    यादें तेरी जो मिटाई नहीं हैं सालों से,
    सजावट बढ गयी घर की मेरे जालों से,
    ऐसे में ऐसा ही होता है ...
    बहुत खूब

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  2. Arun SharmaApril 30, 2012 at 11:28 AM

    बहुत बहुत धन्यवाद आपका.

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  3. SeemaApril 30, 2012 at 8:50 PM

    Bahut hi khoobsoorat kavita.

    ReplyDelete
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