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रविवार, 29 अप्रैल 2012

दवा कोई भी जखम भर नहीं पाई

दवा कोई भी मेरे जखम भर नहीं पाई ,
बिगड़े हालात तो हालत सुधर नहीं पाई,
मुश्किलों ने दरवाजे पर ताला लगा दिया,
रौशनी कमरों में फिर कभी भर नहीं पाई,
मैं हर दिन तिनका -तिनका मरा हूँ,
यादें तेरी लेकिन मुझमे मर नहीं पाई,
घंटों बैठा रहता हूँ समंदर किनारे,
जो डुबा दे मुझे वो लहर नहीं आई....

13 टिप्‍पणियां:

  1. Kailash Sharma30 अप्रैल 2012 को 3:34 pm

    मैं हर दिन तिनका -तिनका मरा हूँ,
    यादें तेरी लेकिन मुझमे मर नहीं पाई,

    ....बहुत खूब !

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  2. Arun Sharma30 अप्रैल 2012 को 3:39 pm

    बहुत बहुत शुक्रिया (SIR)

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  3. expression30 अप्रैल 2012 को 4:24 pm

    वाह...................

    बहुत खूबसूरत....

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  4. Arun Sharma30 अप्रैल 2012 को 4:32 pm

    शुक्रिया

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  5. रविकर फैजाबादी30 अप्रैल 2012 को 5:28 pm

    शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
    प्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||

    मंगलवारीय चर्चामंच ||

    charchamanch.blogspot.com

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  6. Reena Maurya30 अप्रैल 2012 को 7:30 pm

    बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति...

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  7. डॉ॰ मोनिका शर्मा30 अप्रैल 2012 को 8:15 pm

    मुश्किलों ने दरवाजे पर ताला लगा दिया,
    रौशनी कमरों में फिर कभी भर नहीं पाई

    Gahari Abhivykti...

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  8. मनोज कुमार30 अप्रैल 2012 को 9:47 pm

    सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  9. Reena Maurya1 मई 2012 को 1:42 pm

    गहन भाव व्यक्त करती सुन्दर रचना.....

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  10. रविकर फैजाबादी1 मई 2012 को 5:42 pm

    Aaj yah rachna CHARCHA_MANCH par hai |

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  11. रविकर फैजाबादी1 मई 2012 को 5:44 pm

    शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
    प्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||

    मंगलवारीय चर्चामंच ||

    charchamanch.blogspot.com

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  12. संजय भास्कर24 सितंबर 2012 को 8:07 am

    बहुत खूबसूरत....

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    उत्तर
    1. "अनंत" अरुन शर्मा24 सितंबर 2012 को 10:48 am

      शुक्रिया संजय भाई

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